समाज कटकर टुकड़े टुकड़े हो रहा हो, वहाँ इकट्ठा करने वाली
शक्ति के रूप में विवाह एक अनिवार्य आवश्यकता की बात हो
जाता है। इस के सिवा और कोई भी बात जाति-भेद को मिटाने
का काम नहीं दे सकती । ।
लाहौर के जात-पाँत तोड़क मण्डल ने आक्रमण की
यही रीति ग्रहण की है। यह सीधा और सामने से आक्रमण है ।
इस रोग के ठीक निदान के लिए मण्डल धन्यवाद का पात्र है ।
उस ने हिन्दुओं को उन की सच्ची खराबी बताने का साहस किया
है। सामाजिक उत्पीड़न की तुलना में राजनीतिक उत्पीड़न कुछ
भी नहीं । जो सुधारक समाज को ललकारता है वह गवर्नमेण्ट को
विरोध करने वाले राजनीतिज्ञ से कहीं अधिक निर्भोक है ।
जात-पाँत तोड़क मण्डल का यह कहना ठीक ही है कि अन्त-
रवर्णीय सहभोजों और जात-पाँत तोड़क विवाहों का आम रिवाज
हो जाने पर ही जाति-भेद का ज़ोर टूटेगी। मण्डल ने रोग का
कारण ढूंढ़ लिया है। परन्तु अब विचारणीय विषय यह है कि
इस रोग के लिए ठीक योग क्या है। क्या कारण है कि हिन्दुओं
की एक बड़ी संख्या जात-पॉत तोड़ कर रोटी-बेटी-
सम्बन्ध नहीं करती ? क्या कारण है कि जात-पाँत तोड़क अन्दो-
लन सर्वप्रिय नहों ? इस प्रश्न का केवल एक ही उत्तरे हो सकता
है और वह यह कि जात-पाँत तोड़ कर रोटी-बेटी सम्बन्ध उन
विश्वास और सिद्धान्तों को अरुचिकर है जिन्हें हिन्दू पवित्र
समझते हैं ।
ईटों की दीवार या काँटेदार तार की बाड़ की तरह
जान-पाँत कोई स्थूल वस्तु नहीं, जो हिन्दुओं को आपस में
मिलने से रोकती हो और जिसे गिराने की आवश्यकता हो । जात-