लिए खुला छोड़ दिया है। पुरोहित श्रेणी को जरूर ही किसी
कानून द्वारा नियन्त्रण में लाना चाहिए । इस से उस की शरारत
रुक जाएगी और वह जनता को पथभ्रष्ट न कर सकेगी । इस का
मार्ग सब के लिए खुल जाने से यह व्यवसाय प्रजातन्त्री हो
जाएगा। इस से ब्राह्मणी धर्म (Brahmanism) को मारने और
जाति-भेद का नाश करने में सहायता मिलेगी, क्योंकि जाति-
भेद मूर्तिमान ब्राह्मणी धर्म के सिवा और कुछ नहीं । ब्राह्मणी
धर्म वह विष है जिसने हिन्दू-धर्म को नष्ट कर डाला हैं। ब्राह्मणी
धर्म का नाश कर के ही आप हिन्दू धर्म को बचा सकते हैं ।
इस सुधार की किसी को भी विरोध नहीं करना चाहिए ।
आर्य समाजियों को भी इस का स्वागत करना चाहिए। क्योंकि
यह उन के अपने गुण-कर्म के सिद्धान्त का ही प्रयोग है।
यह बात हो सके या न हो सक, परन्तु एक बात तो अवश्य करनी चाहिए । हमें अपने धर्म का नवीन सैद्धान्तिक आधार बनाना चाहिए। वह आधार ऐसा हो जो स्वाधीनता, समता और बन्धुता, सारांश यह कि प्रजातन्त्र के अनुरूप हो । इस के लिए सारी सामग्री हमारे उपनिषदों से मिल सकती है । इस का अर्थ जीवन की मौलिक भावना में पूर्ण परिवर्तन होगा । इस का अर्थ नया जीवन होगा। परन्तु नवीन जीवन नवीन शरीर में ही प्रवेश कर सकता है। नवीन शरीर के अस्तित्व में आने के पहले पुराने शरीर का मर जाना आवश्यक है ।
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