नैतिक चरित्र के परिणाम होते हैं) जो इसे वैसी ही वास्तविक रीति
से बाधा देते हैं जैसे एक ओर दो पंख होना और दूसरी ओर
कोई भी न होना मक्खियों के समूह के लिए असुविधा उत्पन्न
करेगा । एक पद्धति भी वैसी ही अच्छी है जैसी दूसरी, ऐसा
तर्क करना एक की अवस्था में वैसा ही व्यर्थ होगा जैसा दूसरे की
अवस्था में ।"
इस लिए नैतिक चरित्र और धर्म केवल पसन्द और नापसन्द की ही बातें नहीं । हो सकता है कि आप नैतिक चरित्र की किसी ऐसी योजना को बहुत अधिक नापसन्द करें, जिस पर यदि सारे का सारा राष्ट्र आचरण करे तो वह पृथ्वी-तल पर सब से बलवान् राष्ट्र बन सकता है। तो आप के नापसन्द करते हुए भी ऐसा राष्ट्र बलवान हो जाएगा । हो सकता है, आप नैतिक चरित्र की एक ऐसी योजना और न्याय के एक ऐसे आदर्श को बहुत ही पसन्द करें जिस पर यदि सारे का सारा राष्ट्र आचरण करने लगे तो वह दूसरे राष्ट्रों के साथ संग्राम में ठहरने के अयोग्य हो जायगा । तो आप की प्रशंसा के रहते हुए भी वह राष्ट्र अन्त को नष्ट हो जायगा । इसलिए हिन्दुओं को अपने नीति-शास्त्र और धर्म की परीक्षा अपने बच कर जीते रहने की दृष्टि से करनी चाहिए ।
२- हिन्दुओं को सोचना चाहिए कि क्या उन्हें अपने सारे के सारे सामाजिक पैतृक धन को रक्षित रखना ठीक है, या जो कुछ उपयोगी है उसे छाँट कर आने वाली पीढ़ियों को केवल उतना ही देना उचित है।