पृष्ठ:जातिवाद का उच्छेद - भीम राव अंबेडकर.pdf/७८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
७४
जातिभेद का उच्छेद


की उपजों का अध्ययन वर्तमान को समझने में हमें सहायता न देगा । अतीत और उसके दाय का ज्ञान केवल तभी बहुत महत्व रखता है जब वह वर्तमान में प्रवेश करता है, अन्यथा नहीं। और अतीत की बची खुची चीज़ों और मिसलों को शिक्षा की प्रधान सामग्री बनाने में भूल यह है कि इस से अतीत के वर्तमान का प्रतिद्वन्द्वी और वर्तमान के अतीत का न्यूनाधिक व्यर्थ प्रतिरूप बन जाने का भय रहता है ।"

जो सिद्धान्त जीने और बढ़ने की वर्तमान क्रिया को तुच्छ बताता है, वह स्वभावतः वर्तमान को शून्य और भविष्य को दूर की वस्तु समझता है। ऐसा सिद्धान्त प्रगति के लिए अपकारी और जीवन के प्रबल और अटल प्रवाह के लिए बधिक है।

३–हिन्दुओं को इस बात पर विचार करना चाहिए कि क्या अभी तक उन के लिए इस बात को स्वीकार करने का समय नहीं आया कि कोई भी वस्तु स्थिर नहीं, कोई मी वस्तु अप- रिवर्तनीय नहीं, कोई भी सनातन नहीं; प्रत्येक वस्तु बदल रही है, व्यक्तियों और समाज के लिए परिवर्तन ही जीवन का नियम है । एक बदलते हुए समाज में पुरानी कीमतों का अविरल रूप से बढ़ते-घटते रहना आवश्यक है। हिन्दुओं को इस बात को स्वीकार करना चाहिए कि यदि मनुष्यों के कर्मों की जाँच के लिए किसी कसौटी का होना ज़रूरी है तो उस कसौटी का संशोधन करने के लिए भी उन का हर वक्त तैयार रहना आवश्यक है ।