पृष्ठ:जातिवाद का उच्छेद - भीम राव अंबेडकर.pdf/८३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
अंतरजातीय विवाह

सन् १९१८ में माननीय श्रीयुत बी० जे० पटेल ( वर्तमान प्रधान, जिलेटिव असंबली ) ने एक बिल पेश किया था । उस बिल का उद्देश्य दो भिन्न-भिन्न जातियों के हिंदुओं में होने वाले विवाह को कानून की दृष्टि में धर्मसंगत और ज़ायज़ ठहराना था । कारण, इस समय कुछ पुराने ढर्रे के लोगों के प्रभाव से सरकार ने जिसको हिंदू क़ानून समझ या बना रखा है, उसके अनुसार दो भिन्न जातियों के हिंदुओं के बीच होनेवाले विवाह की संतान धर्मसंगत नहीं, और वह अपने बाप-दादे की पैतृक संपत्ति पाने का अधिकार नहीं रखता । श्रीयुत पटेल का बिल उस जाति पति-तोड़क संतान को पैतृक संपत्ति पाने का अधिकार दिलाना चाहता था । पर कई कारणों से उस समय इस बिल को भविष्य में मिलनेवाली रीफ़ार्मूड असंबली में पेश करने के लिये स्थगित कर देना उचित समझा गया । उन दिनों लाहौर की सनातन-धर्मसभा ने श्री अमृतलाल राय रिटायर्ड हिंदू "जर्नलिस्ट" नाम के एक सज्जन से बिल के विरुद्ध अँगरेज़ी में बड़े साइज के २८ पृष्ठ का एक पैफलैट लिखाकर छपाकर बाँटा था। इसमें जाति-पाँती तोङने के विरुद्ध अनेक युक्तियाँ दी गई है, और हिदू-अंतरजातीय विवाह की हिंदू-समाज के लिए और हानिकारक बताकर वायसराय से प्रार्थना की गई है कि बिल को स्वीकृति न दें। उसी पैफलेट की युक्तियों की आलोचना इस क्षेत्र में करने का यत्न किया गया है।

अपनी अलोचना से पहले इस यहाँ श्रीरवींद्रनाथ ठाकुर की 'भारत-