पृष्ठ:जातिवाद का उच्छेद - भीम राव अंबेडकर.pdf/८४

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सेवक' नामक पत्र में प्रकाशित उस चिट्ठी का अनुवाद भी दे देना चाहते हैं, जो महाकवि ने पटेल-मित्र के समर्थन में लिखी थी।

(डॉक्टर सर रवींद्रनाथ की विट्ठी )

यह देखकर लज्जा होती है कि हमारे कई देश-बंधु इस धारणा से इस बिल का विरोध के रहे हैं कि यदि यह पास हो गया, तो इससे हिंदू समाज की हानि होगी । वे यह नहीं सोचते कि जो लोग पहले ही समाज की वेदी पर अपना बलिदान करने को तैयार हैं, उन पर किसी शासक-शक्ति की ओर से और अधिक निष्क्रिय या सक्रिय कठोरता करके उनके अंतःकरण के विरुद्ध उन रूढ़ियों का पालन करने पर विवश करना उचित नहीं, जिनका आधार नैतिक नियम नहीं । यह कहना कि हिदू-समाज तब तक कायम नहीं रह सकता, अब तक इसमें ऐसे दुःखी लोग न हों !जिनको झूठ और कायरता का जीवन व्यतीत करना पड़ता है, दूसरे शब्दों में यह कहना है कि ऐसे समाज के रहने की बिलकुल ज़रूरत नहीं। इसके अतिरिक्त ऐसा परिणाम हिंदू-धर्म की आत्मा पर एक लांछन है। इतिहास बताता है कि महाभारत काल से लेकर अब तक जब कि एक विदेशी सरकार ने हमारे समाज-रूपी शरीर को, जीवन की लचक से वञ्चित करके, अपने कङे कानूनों के द्वारा निश्चेष्ट थर-सा बना दिया, और चेतनाशून्य करके मृत्यु के अधिक निकट पहुँचा दिया है, हिन्दू-समाज भिन्न-भिन्न मतों और रीतियों को अपने में स्थान देता, भिन्न-भिन्न जातियों को आपस में मिल जाने और नवीन सामाजिक प्रबंध करने को आशा देता रहा है। इसमें संदेह न कि जो लोग अपने लिये आप सोचने और कर्म करते हैं, और जिनमें मानसिक और नैतिक स्वतंत्रता के लिए अजेय प्रेम होता है, सब कहीं समाज उनको संदेह की दृष्टि से देखता और उनके साथ वैरी का-सा बर्ताव करता है। परंतु ओ समाज सहनशीलता की सभी सीमाओं का उल्लंघन कर देता है, जो ऐसे