पृष्ठ:जातिवाद का उच्छेद - भीम राव अंबेडकर.pdf/८५

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मनुष्यों के लिये उसके मंडल में रहना असंभव बनाने में कोई रस नहीं उठी रखी, जिनमें अपने विश्वास पर चलने का साहस और ईमानदारी है और जो इस कारण सत्य और पुण्य के लिये संग्राम रने के लिये अनील उपयुक्त हैं, उस समाज के भाग्य में दासों का अनंत पीढ़ियाँ उत्पन्न करना अवश्यभावी है । जहाँ समाज अपने अत्याचार के शस्त्र इतने भयंकर रूप से चलाता है, वहाँ किसी विदेशो सरकार में अपील करना कि वह अपनी स्वीकृति से किसी सामाजिक अत्याचार को और भी कम कर दे, लोगों से उनके अंतःकरण की स्वतंत्रता छीन ले, और दूसरे ही दिन उसी सरकार से एक अधिक लंबी-चौड़ी राजनीतिक स्वाधीनता माँगना बड़ी लज्जा की बात है। जो लोग राज्य की सगठित शक्ति से प्रार्थना करते हैं कि वह, अपनी प्रत्यक्ष सहायत द्वारा या उस संबंध में आंखें मीचकर, दुर्बल अल्प संस्था को बहुत ही बुरे प्रकार की सामाजिक दासता के अधीन होने पर विवश करे, निश्चय ही वे उस राज्य-शक्ति में भाग लेने के अधिकारी नहीं ।"

अपने बिल को पेश करते समय श्रीयुत पटेल ने कहा---

"वर्तमान हिदू-कानून का जो आशय इस समय अदालतों में लिया जाता है, उसके अनुसार हिंदू-विवाह में वर और वधू का एक जाति के होना आवश्यक है । श्रीमन्, इस आशय से, जैसा कि मैं अपने उद्देश्यों और कारणों में कह चुका हूँ, व्यक्तिगत अवस्थाओं में घोर कठिनाइयाँ उत्पन्न हो रही हैं । अपने कथन के समर्थन में मैं केवल दो उदाहरण देता हैं। ये दोनों मुकद्दमे बंबई-हाईकोर्ट ने फैसला किए थे।

( ) १६ वर्ष की एक लड़की ने एक दूसरी जाति के युवक से विवाह किया । वे २५ वर्ष इकट्ठे रहे और विवाह से उनके आठ बच्चे हुए । सब ऐसा हुआ कि पति ने पत्नी का परित्याग कर दिया । एक