पृष्ठ:जातिवाद का उच्छेद - भीम राव अंबेडकर.pdf/८८

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लोगों पर पड़ता है, उसे थे सोचते तक नहीं और न इसकी पर ही करते हैं। एक अच्छे खड़के या लड़की को कहीं कोई दूसरा न फुसला ले जाय, इस विचार से विवाह में बहुत जल्दी की जाती है। इसमें सात्त्विक मानुषी भावों और अच्छी भावनाओं की कुछ भी परवा नहीं की जाती । लड़कियों के ख़रीदने, बेचने, बदला करने, या अनिवार्य रूप से दहेज देने, को बहुत-से जाति-पाँति के कट्टर पक्षपोषक भी नहीं मानते हैं परंतु वे मजबूर हैं।"

श्रीयुत पटेल के बिल का समर्थन अनेक सजनों ने किया। उनमें से मिस्टर जिआह, डॉक्टर तेजबहादुर सप्रू,श्री श्रीनिवास शास्त्रा, माननीय राज सर रामपालसिह, श्री० सुरद्रनाथ बैनर्जी, और रावबहादुर बी० एन० शर्मा का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है।

डॉक्टर तेजाबाहदूर सप्रू ने कहा कि जो लोग इस बिल का विरोध करते हैं, वे इसको समझने में भूल करते हैं। यह कट्टर विचार के लोगों पर आक्रमण नहीं । इसका उद्देश्य उन लोगों की रक्षा करना है, जो पौराणिक हिंदू-धर्म के सभी सिद्धांत और विश्वास को मानने को तैयार नहीं ।

राजा सर रामपालसिंह ने कहा---"मैं इस कौंसिल में हिंदू-विवाह बिल को पेश करने की आज्ञा देने का विरोध करने खड़ा हुआ हूँ। मैं हिंदू-समाज की जाति-पाँति को नहीं मानता, और मेरा दृढ़ विश्वास है कि जब तक हिंदू जाति-पाँति के गुलाम हैं, तब तक आधुनिक युग की सभ्यता में उनके ऊपर उठने और संसार की जातियों में उच्च स्थान पाने की बहुत कम आशा है। अब पुराने समय से बहुत परिवर्तन हो चुका है । जाति-पाँति उन स्मरणातीत युगों के शायद अनुकूल रही हो, परंतु यह वर्तमान अवस्था के अनुकूल बिलकुल नहीं रही । कालांतर में इसकी स्वाभाविक मृत्यु अवश्यंभावी है।”

मिस्टर श्रीनिवास ने कहा---"यदि मिस्टर पटेल वर्तमान अवस्था में