पृष्ठ:जातिवाद का उच्छेद - भीम राव अंबेडकर.pdf/८९

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अ‌पने बिल को वापस ले लें, तो मैं अतुष्ट हैं। परंतु यदि वे इसे पेश करने की आज्ञा के लिये जोर दें, तो मैं अपने विश्वास और अपनी अंतरात्मा के आदेश को मानते हुए इसका हार्दिक समर्थन करने पर विवश हैं ।"

अब इस पर मिस्टर अमृता राव की आपत्तियों और उनका उत्तर सुनिए ! मिस्टर राय कहते है ---

"हिंदुओं की एक बहुत बड़ी संख्या वर्तमान अवस्था से संतुष्ट है। यदि वे संतुष्ट न होते, तो वे आप ही इसका कुछ उपाय करते, जैसा कि अपने प्राचीन इतिहास से करते रहे हैं । विवाह का बाजार अभी इतना भी तंग नह हुआ कि एक ही जाति के भिन्न-भिन्न प्रांतों में बसनेवाले लोगों के बीच विवाह की समस्या को हल करने की जरूरत का अनुभव हो, यद्यपि यह बात उनके शास्त्रों और बध्दमूल मोर्चा की उतनी विरुद्ध नहीं । ऐसी अवस्था में किसी को जाति-पाँति तोड़कर विवाह करके हुनात्मा बनने की क्या आवश्यकता या बहाना हो सकता है, जो कि वर्तमान हिंदू-रिवाज और भावना के भारी विरुद्ध हैं।

जो भी हो, यह समझ में नहीं अता कि बिना कारण और बिना अवसर जिस-किसी से प्रणय-संबंध जोङ लेना, घर की नौक रानी के साथ ब्याह कर लेना या माईस के साथ भाग जाना धर्म वीर कहलाने का कैसे योग्यता हो सकती है ।"

उत्तर--आपका देश की स्थिति का ठीक ज्ञान नहीं जान पङता, नहीं तो आप ऐसा न कहते । लोग बिरादरियों के संकीय क्षेत्रों से तंग हैं, पर आप-जैसे कद्दर पौराणिक ने उनको इतना भयभीत कर रक्खा है कि उनमें विवाह के लिये जाति से बाहर जाने की साहस ही नहीं रहा । क्या पिछले दिनो पं० मदनमोहन मालवीय के समधी पं लक्ष्मीकांत भट्ट ने धर्मवीर बनने के भाव से अपनी पुत्री का विवाह मालवीय बिरादरी से बाहर किया था, जिसके लिये माल-