पृष्ठ:जातिवाद का उच्छेद - भीम राव अंबेडकर.pdf/९०

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वीयजी ने उन्हें जाति से निकाल दिया था! मालूम होता है, अपके कोई पुत्र-पुत्री विवाह योग्य नहीं । हम पूछते हैं, क्या नल से पानी पीना, रेल में भोजन करना, गाय के सारम से चेचक का टीका कराना, सतीप्रथा को बंद करना, विदेश जाने को बुरा न मानना, विधवा-विवाह सब प्राचीन हिंदू-भावना के अनुकूल हैं और वर्तमान हिदू-भावना दूषित है। उसे एक स्वस्थ और स्वाधीन मनुष्य की भावना नहीं की जा सकता। यह एक कायर, संकुचित-हृदय, भयभीत और अदूरदर्शी मनुष्य की आत्महत्यारी भावना है यह हमारे लिये कोई मान्य नहीं । जब जाति-पाँति-तोङक इस भावना को बदल देंगे, जैसे कि अर्यसमाजी, सिक्ख, ब्राह्म, जैन, राधास्वामी, और देवसमाज बदल रहे हैं, तो आपको अगली पीढ़ी के लिये वहीं सुधरी हुई भावना प्राचीन जान पड़ेगी ।

नौकरानी और साईस की आप तुच्छ और नीच समझते हैं। यह आपका उस सदोष मनोवृत्ति का फल है, जिसने हिंदुओं में हाथ के काम के महत्व को गिरा रक्खा है। यदि एक दासी रूपवती, गुणवती और सदाचारिणी है, और एक साईस गुणवान् मनुष्य है, तो उसके साथ विवाह करने में क्या दोष है ? क्या महाराज शंतनु ने दासराज की पुत्री सत्यवती से और सावित्री ने सत्यवान लकङहारे से विवाह नहीं किया था ? क्या व्यासदेव ने दासी से भक्तराज विदुर और क्या महारानी कुन्ती ने सूत (कोचदान ) से कर्ण-सा वीर उत्पन्न नहीं किया था ?

आक्षेप——सरकार अँगरेज़ी की जिस बात ने सबसे अधिक लोक- प्रिय बनाया है, वह उसकी विविध बिरादरियों को सम्माजिक बातों में इस्तक्षेप न करने और उनकी स्वतंत्रता की अवधि रहने देने की व्यापक रति है। इसलिये सरकार को हिंदू-अंतरजातीय विवाह बिल नहीं पास होने देना चाहिए ।