पृष्ठ:जातिवाद का उच्छेद - भीम राव अंबेडकर.pdf/९६

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सकता है। सब उस महान् एक में मिल जाते हैं। परंतु मनुष्यों के वर्तमान सामाजिक और घरेलू जीवन की हद-वदियों में, जिसमें मेरे और तेरे का सवाल सदा बना रहता है, सर्वजनान समता था एकत्व संभव नहीं।

उत्तर—छोटा-बड़ा, अमार-गरीब, चपरासी-जज ये सब श्रेणियाँ (classes) हैं, जातिया (castes) नहीं। श्रेणियों बदलती रहती हैं। एक ग़रीब अपने उद्याेग से अमीर बन सकता है। लोहार का पुत्र ससोलीना आज इटली का शासक है। धीवर-पुत्र हबीबुल्ला उपनाम बच्चा-सक्का अपने वाहूबल से काबुल के राजसिंहासन पर बैठ सकता है। सोचा का बेटा लायद जार्ज अपने बुद्धि बल से ब्रिटिश- राज्य का प्रधान मंत्री बन सकता है। परंतु वेदों का पंडित और कर्नल हो आने पर भी आप एक चमार को ब्राह्मया या क्षाश्रय नहीं स्वीकार करते। जन्म-मूलक जाति-पाँति इसी कारण मानव-समाज की उन्नति में भारी बाधा और अन्याय-सृजक है। अमीर के पुत्र के पास अब तक संपत्ति है, तब तक वह अमीर कहलाएगा। उससे धन छीनने की जरूरत नहीं। जब उसके पास धन नहीं रहता, तो कोई उसे धनी मानकर उससे ऋण लेने नहीं जाता। इसी प्रकार यदि कोई लड़का अपने विद्वान् और परोपकारी ब्राह्मग्य-पिता से जन्म के साथ अच्छा संस्कार और सद्द्वृत्तियाँ विरासत में पाता है, तो उसकी उन ब्राह्मण-वृत्तियों की कोई उससे छीनने काे नहीं कहता। वह उन पैतृक संस्काराे के प्रताप से बेशक विद्वान् और सान्य बन जाय। पर जिस निरक्षर और लंठ के पास पिता से मिला हुआ विद्या धन—ब्राह्मणत्व—तो कुछ नहीं, आप उस पूज्य और विद्वान् मानने के लिए जनता को क्यों मजबूर करते हैं? वह तो उस सेठ-पुत्र की सरह है, जिसके पास कौड़ी भी नहीं जो भीख माँगकर गुज़र करता है, पर कहलाना है करोड़पोत क्या बड़े-बड़े अफसरों के अयोग्य