पृष्ठ:जातिवाद का उच्छेद - भीम राव अंबेडकर.pdf/९७

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पुत्र उनके चपरासियों के योग्य पुत्रों के अधीन सरकारी कार्यालयों में काम करते नहीं देखे जाने? क्या सरकार डाकिए के पुत्र को इसलिये पोस्ट-मास्टर बनाने से इनकार कर देती है कि उसके अधीन उन बाबुओं के पुत्रों को कुर्की करनी पड़ेगी, जो उसके पिता डाकिए के अफ़सर हैं?

एक आत्म-सम्मान रखनेवाले मनुष्य को धन प्यारा होता है या सम्मान? एक मनुष्य आपको नीच समझता, आपसे छूकर स्नान करता, और आपसे कुत्तों से भी बत्तर सुलूक करता है। यदि वह मनुष्य आपको कुछ धन दे तो क्या आपका आत्म-सम्मान आपको इस बात की आज्ञा देगा कि आप उससे सहर्ष सहायता लेना स्वीकार करें? जिस व्यक्ति में चिरकात्तिक सामाजिक गुलामी मे, भूख और दरिद्रता ने, और अविद्या-अज्ञान ने आत्म-सम्मान के भाव को बिलकुल मार नहीं डाला, वह अपने अपमान करनेवाजे—उस नीच और अछूत समझनेवाले—से कभी सहायता लेना गवारा न करेगा। आप तो अपने को 'परमेश्वर के प्यारे पुत्र' और 'भूदेव' माने बैठे हैं और संभव है कि शूद्रों और अछूतों को काई अधिकार नहीं कि वे हमारे बराबर बन सके, इसी से आप उसका नीचता और अपनी उच्चता को प्रमाणित करने के लिये नाना प्रकार की निस्सार और झूठी युक्तियाँ गढ़ रहे है। ये सब बातें आपको घर में ही बैठे सूझती हैं। जिस समय अरकाटी लांग बाण और भंगी को फँसा- कर फ्रि़जा में ले आते है और वहाँ उन दोनो से पाखाना उठवाते है उस समय आपकी जन्ममूलक श्रेष्ठता कहाँ चली जाती है? किसी को नीच, अछूत या शूद्र कहना और समझना उसकी आत्मा पर भारी आघात करना है। इसका असर शांशरीक चोट से कहीं अधिक घातक होता है। क्या कोई मनुष्य दस जूते स्वीकर एक रुपया पाना पसंद करेगा? जब मनुष्य की आत्मा मर जाती है, तभी वह आत्म-सम्मान की अपेक्षा धन से अधिक प्यार करता है।