पृष्ठ:जातिवाद का उच्छेद - भीम राव अंबेडकर.pdf/९८

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ब्राह्मण चमार को भाई समझता है, इसका दृश्य प्रमाण क्या है? क्या कौंसिल के वोट लेने या सरकार में हिंदुओं की संख्मा अधिक दिखाने के लिये ही वह दो उंगल को जीभ से उसे भाई नहीं कहता है? हालाँ कि उसका हृदय उसके प्रति घृणा के भाव से भरा पड़ा है। जिन्होंने 'आस्मत्रमर्वभूतेषु' कहा था, वे आपकी तरह स्वाथांध होकर मूर्ख को विद्वान् और नीच को उच्च नहीं समझते थे। अमीर और गरीब के बाच का भेद उतना दुःखदायी नहीं, जितना ब्राह्मण और भंगी के बीज का। अमीर-गरीब तो सारे संसार में हैं, ब्राह्मणों और भंगियों में भी हैं। क्या आप देखते नहीं कि सब ईसाई, बौद्ध और (भारत के सिवा) मुसलमान देशों में कोई जाति-पाँति नहीं? इस दृष्टि से क्या वहाँ सर्वजनीन समता नहीं?

परमेश्वर के सामने और ब्रह्म के सामने ब्राह्मण और भंगी बराबर है—ये बेहूदा झाँसे और झूठी ढादले अब निकम्मी हो चुकी है। क्या ब्रह्म इस दुनिया को नहीं देख रहा है? फिर आप यहाँ क्यों भेद-भाव रखते हैं? खैर, आपका ज़ोर है, सो रखते जाइए आप तो ब्रह्म के सामने जाकर जाति-पाँति बढ़ाने का वचन देते हैं, पर जो योग आपके अत्याचारों से तंग आ चुके हैं, वे ठीक आपके सामने इस जाति-पाँति को नष्ट करने का उद्योग कर रहे है। जो बात ब्रह्म को अच्छी नहीं लगती, मालूम नहीं, आप से बनाए रखने पर क्यों एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा रहे है?

आक्षेप—जाति-पाँति से हिंदू अपनी उबता का नहीं, वरन् अपने जन्म की पवित्रता का गर्व करता है।

उत्तर—जन्म की पवित्रता से आशय यदि माता-पिता से मिलनं बाले रज-बीर्य की पवित्रता से है, तो जितने उपदेश, बवासीर, मिरगी, सूजाक, सुजली आदि रोगों से पीड़ित और कुरूप द्विज है, इन सबको तंदुरुस्त और सुंदर शरीरवाले अछूतों और शूद्रों से नीच