पृष्ठ:जातिवाद का उच्छेद - भीम राव अंबेडकर.pdf/९९

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समझना और उनमें वैसे ही घृणा करनी चाहिए। परंतु यह तो बात यह है कि एक बनिया दूसरे काले कलूटे और उपदंश के मारे हुए बनिए को तो ठिक समझता है पर एक सुदर, सुडौल और गोरे छमार की छाया पड़ जाने पर स्नान करना है।

आरोप—जो लोग प्राचीन हिंदु-प्रथा को तो अंतरजातीय विवाह करना चाहते हैं और आप उन्हे उनकी आत्मा का आदेश समझकर करने देना चाहते हैं, तो फिर जिनकी आत्मा चाचा, मामा, या फूफी की लड़कियों के साथ विवाह करने को कहती हैं, उनको आप किस मुंह से रोकते हैं।

उत्तर—मामा, चाचा या फूफाे आदि की लड़कियों से विवाह का निबंध इसलिए आवश्यक है कि इसमें एक प्रकार का लहू मिलने (Consanguinity of blood) से संतान रही पैक्षा होती है। जाति-पाँति ताेड़ने में वह दोष नहीं पैदा होता। ईसाइयों में, जहाँ मामा और चाचा को लड़की से विवाह करने की मनाही नहीं, वहाँ जाति-पाँति का बंधन न होने से अधिकांश विवाह परिवार से बाहर ही हुआ करते हैं। इस प्रकार उनमें बाहर से नया लहू अधिक मात्रा में मिलता रहता है। ऐसी दशा में यदि एकाध विवाह मामा या चाचा के यहाँ भी हो जाय, तो उसका उतना बुरा प्रभाव नहीं पड़ता। जैसे हमारे यहाँ अर्जुन ने सुभद्रा से और पृथ्वीराज ने संयुक्ता से किया था। फिर भी बुद्धिमान् पाश्चात्य विद्वान इन निकट के विवाहों को बुरा समझकर दूर-दूर विवाह करने की प्रचार कर रहे है।

आक्षेप—जिस इँगलैंड को स्वतंत्रता का भर और स्वाधीन संस्थाओं का बड़ा क्रीड़ा-स्थल कहा जाता है, वह भी कैथोलिक खोगों को मनुष्य- त्व के अतीत प्रारंभिक स्वस्थाें और अंतःकरण की स्वतंत्रता से वंचित रखता जाता था। फ्रांस के प्रजा-तंत्र सेबड़कर व्यक्तिगत