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राजा-गजपति-संवाद खंड

रंगनाथ हौं जा करहाथ ओहि के नाथ।
गहे नाथ सो खैचै, फेरे फिरै न माथ॥३।

पेम समुद जो अति अवगाहा। जहाँ न बार न पार न थाहा॥
जो एहि खीर समुद महँ परे। जीउ गँवाई हंस होइ तरे॥
हौं पदमावति कर भिखमंगा। दीठि न आव समुद औ गंगा॥
जेहि कारन गिउ काथरि कंथा। जहाँ सो मिलै जावें तेहि पंथा॥
अब एहि समुद परेऊँ होइ मरा। मुए केर पानी का करा?॥
मर होइ बहा कतहुँ लेइ जाऊ। ओहि के पंथ कोड धरि खाऊ॥
अस मैं जानि समुद महँ परउ। जौ कोइ खाइ बेगि निसतरऊँ॥

सरग सीस, धर धरती, हिया सो पेम समुंद।
नैन कौड़िया होइ रहे, लेइ लेइ उठहिं सो बूंद॥४॥

कठिन वियोग जाग दुख दाहू। जरतहि मरतहि ओर निबाहू॥
डर लज्जा तहँ दुवौ गवाँनौ। देखै कि न आगि नहिं पानी॥
आगि देखि वह भागे धावा। पानि देखि तेहि सौंह धंसावा॥
अस बाउर न बुझाए बूझा। जेहि पथ जाइ नोक सो सूझा॥
मगर-मच्-छडर हिये न लेखा। आपुहिं चहै पार भा देखा॥
औ न खाहिं सिंघ सदूरा। काठहु चाहि अधिक सो झूरा॥
काया माया संग न आयी। जेहि जिउ सौंपा सोई साथी॥

जो किछु दरब अहा सँग, दान दीन्ह संसार।
ना जानी केहि सत सेंती, दैव उतारै पार॥५॥

धनि जीवन औ ताकर हीया। ऊँच जगत महँ जाकर दीया॥
दिया सो जप तप सब उपराहीं। दिया बराबर जग किछु नाहीं।
एक दिया ते दसगुन लहा। दिया देखि सब जग मुख चहा॥
दिया करै आगे उजियारा। जहाँ न दिया तहाँ अँधियारा॥
दिया मंदिर निसि करै अँजोरा। दिया नाहिं घर मूसहिं चोरा॥
हातिम करन दिया जो सिखा। दिया रहा धर्मन्ह महें लिखा॥
दिया सो काजु दुवाै जग आवा। इहाँ जो दिया उहाँ सब पावा॥

"निरमल पंथ कीन्ह तेइ, जेइ रे दिया किछु हाथ।
किछु न कोई लेइ जाइहि, दिया जाइ पै साथ"॥६॥


 

नाथ = नकेल, रस्सी। माथ = सिर या रुख तथा नाव का अग्रभाग। (४) हंस = (क) शुद्ध आत्मस्वरूप, (ख) उज्ज्वल हंस। मर = मरा, मृतक। कौड़िया = कौड़िल्ला नाम का पक्ष जो पानी में से मछली पकड़कर फिर ऊपर उड़ने लगता है । (५) सदूरा = शार्दूल, एक प्रकार का सिंह। आथी अस्ति; है। सेंती = से।

(६) दीया = (क) दिया हुआ, दान (ख) दीपक।