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पदमावत


हीरामन राजा सों बोला। एही समुद आए सत डोला॥
सिहलदीप जो नाहिं निबाहू। एही ठाँव साँकर सब काहू॥
एहि किलकिला समुद्र गँभीरू। जेहि गुन होइ सो पावे तीरू॥
इहे समुद्र पंथ मभधारा। खाँड़े के अश्ति धार निनारा॥
तीस सहस्न॒ कोस के पाटा। अस साँकर चलि सकै न चाटा॥
खाँड़े चाहि पैनि बहुताई। बार चाहि ताकर पतराई॥
एहीठाँव कहँँ गुरु सँग लीजिय। गुह सँग होइ वार तौ कीजिय॥

मरन जियन एहि पंथहि, एही आस निरास।
परा सो गरउ पतारहि, तरा सो गा कविलास॥७॥

राजे दीन्ह कटक कहूँ वीरा। सुपुरुष होहु, करहु मन धीरा॥
ठाकुर जेहिक सूर भा कोई। कटक सूर पुनि आपुहि होई॥
जौ लहि सती न जिउ सत बाँधा। तौ लहि देइ कहाँर न काँधा॥
पेम समुद महँ बाँधा वेरा। यह सब समुद बूँद जेहि केरा॥
ना हौं सरग क चाहों राजू। ना मोंहि नरक सेंति किछु काजू॥
चाहौं ओहि कर दरसन पावा। जेइ मोहिं आनि पेम पथ लावा॥
काठहिं काह गाढ़ का ढोला। बूड़ न समुद, मगर नहिं लीला॥

कान सप्रुद धँसि लीन्हेसि, भा पाछे सब कोइ।
कोइ काहू न सँभारे, आपनि आपनि होइ॥८॥

कोइ बोहित जस पौन उड़ाहीं। कोई चमकि बीज अस जाहीं॥
कोई जस भल धाव तुखारू। कोई जैस बैल गरियारू॥
कोइ जानहुँ हरुआ रथ हांका। कोई गरुअ भार बहु थाका॥
कोई रेंगहि जातहुँ चाँटी। कोई टूटि होहि तर माटी॥
कोई खाहिं पौन कर भोला। कोई करहिं पात अस डोला॥
कोई पराहिं भौंर जल माहाँ। फिरत रहहिं, कोइ देइ न बाहाँ॥
राजा कर भा अगमन खेंवा। खेवक आगे सुआ परेवा॥

कोइ दिन मिला सबेरे, कोइ आवा पछराति।
जाकर जस जस साजु हुत, सो उतरा तेहिं भाँति॥९॥

 

१. कुछ प्रतियों में इसके स्थान पर यह चौपाई है — एही पंथ सब कहेँ है जाना। होई दुसरै विसवास निदाना। मुसलमानी धर्म के अनुसार जो वैतरणी का पुल माना गया है उसको ओर लक्ष्य है। विश्वास के कारण यह दूसरा ही (अर्थात्‌ चौड़ा) हो जाता है।

(७) साँकर = कठिन स्थिति। साँकर = पकरा, तंग। (८) सेंति = सेंती, से। गाढ़ = कठित। ढीला = सुगम। कान = कर्ण, पतवार। (९) गरियारू = मट्ठर, सुस्त। हरुआ = हलका। थाका = थक गया। कोला = भझोंका, भकोरा। अगमन = आगे। पछराति = पिछली रात। हुत = था।