पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/२८१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

रत्नसेन सूली ७ । राजा रहा दिस्टि के ऑौंधी। रहि न सका तब भाँट दसौंधी ॥ कहेसि मेलि के हाथ कटारी। पुरुष न मारे बैठ पेटारी कान्ह कोपि जब मारा कंसू । तब जाना पूरुष के बंस ॥ गंध्रबसेन जहाँ रिस बाढ़ा । जाइ भाँट भागे भा ठाढ़ा ॥ बोला गंध्रबसेन रिसाई। कस जोगी कस भाँट असाई ॥ ठाढ़ देख सब राजा राऊ। बाएँ हाथ दीन्ह बरम्हाऊ ।। जोगी पानि, नागि तू राजा। नागिहि पानि जून नहि छाजा ॥ आागि बुझाइ पानि सौं, जूझ न, राजा वह लीन्हें खप्पर बार तोहि, भिक्षा देहि, न जत जोगि न होई, ग्राहि सो भो। जानलु भेद करहु सो खोज ॥ भारत ग्रोइ जूझ जौ ओोधा। होंहि सहाय आई सब जोधा ॥ रनघट बजावा। सुनि के सबद बरम्हा चलि धावा ॥ फनपति फन पतार स काढ़ा। आस्टौ कुरी नाग भए ठाढ़ा ॥ छप्पन कोटि बसंदर बरा। सवा लाख परबत फरहा ॥ चहे अन लै कृ स्न मुरारी। इंद्रलोक सब लाग गोहारी। तैतिस कोटि देवता साजा। औ छानबे मेघदल गाजा ॥ नबौ नाथ चलि श्रावहि, नौ चौरासी सिद्ध । आाज महाभारत चलेगगन गरुड़ औ गिद्ध 1 ८ ॥ भइ ग्रज्ञा को भाँट अभाऊ। बाएँ हाथ देइ बरम्हाऊ ॥ को जोगी आस नगरी मोरी । जो देइ सेंधि चले गढ़ चोरी ॥ इंद्र डरे निति नावें माथा। जानत कृस्न सेस जेइ नाथा ॥ बरम्हा डरे चतुरमुख जासू । औौ पातार बलि बास ॥ डर मही हलै नौ च लै सुमेरू । चाँद सूर औौ गगन कुबेरू मेघ बिजुरी जेहि दीठीं। कूरुम डेरे धरति जेहि पोठी ॥ डर चहाँ नाजु माँगों धरि केसा। औौर को कीट पतंग नरेसा ? ॥ बोला भाँट, नरेस सुनु : गरब न छाजा जीउ । कुंभकरन के खोपरीबूड़त बाँचा भीडें ॥ & ॥ रावन गरव बिरोधा रामू । श्रोही गरब भएड संग्रामू । तस रावन अस को बरिबंडा। जेहि दस सीसबीसभुजदंडा ॥ (७) राजा =गंधर्वसेन। औौंधी = नीची। आसाई = अताई (?) बेंढंगा । (८) भारत = महाभारत का सा युद्ध । शोधा = ठाना, नांधा। अस्टी कुरी अष्टकुल नाग । बसंदर = वैश्वानरअग्नि । फरहरा ८५ फड़क उठे । = यात्र अस्त्र । लाग गोहारी = सहायता के लिये दौड़ा। नव नाथ == गोरखपंथियों के नौ नाथ। चौरासी सिः = बौद्ध बयान योगियों के चौरासी सिद्ध । (९) भाऊ = आदर भाव न जाननेवाला, अशिष्ट, बेअदब । बरम्हाऊ = बरम्हवआशीर्वाद । बाल = बासुकि । माँगौं धरि केसा के बाल पकड़कर व्र ला सँगाऊँ। (१०)"बरिखंड = बलवंत, बली