पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/२९२

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पदमावत

११। गंध्रबसेन धौराहर पर दीन्हा बासू। सात खंड जहवाँ कविला । सखी सहस दस सेवा पाई। जनm चाँद सँग नखत तराई ।। होड़ मंडल ससि के चहें पासा । ससि सूहि लेइ चढ़ी अकासा चलु सूरज दिन अथवै जहाँ। ससि निरमल तू पाव ितहाँ । दीन्ह न राजहि, जोगिहि दीन्हा ॥ मिलीं जाड़ ससि के चढ़ पाएँ। सूर न चाँपे पाचे बॉह It अब जोगी गुरु पावाँ सोई। उतरा जोगभसम गा धोई ॥ श्रौराहर, सात रंग नग लाग गा कबिलासहि, दिस्टि पाप सब भाग 1 १७ ।। खंड सातौ कबिलासा। का बरनौं जग ऊपर बासा हीरा ईट कपूर गिलावा। मलयागिरि चंदन सब लावा चना कीन्ह नौटि जगमोती। मोतिह चाहि अधिक तेहि जोती बिसुकरमै सो हाथ सँवारा । सात खंड सातहि चौपारा । प्रति निरमल नहि जाइ बिसेखा। जस दरपन महें दरसन देखा भुईं गच जान, समुद हिलोरा । कनकखंभ जन रचा हिंडोरा ।। रतन पदारथ होइ उजियारा । भूले दीपक औौ मसियारा त, अछरी पदमावति, रतनसेन के पास सातौ सरग हाथ ज, श्रौ सातौ कबिलास 1 १८ ॥ पुनि ततें रतनसेन पशु धारा। जहाँ नौ रतन सेज सँवारा पुतरी गढ़ि गढ़ि खंभझं काढ़ी। जनु सजीव सेवा सब ठाढ़ी ॥ काहू हाथ चंदन के खोरी। कोई सेंदर, कोइ गहें सिंधोरी ! कोइ कुएँकुर्सी केसर लिहे रहै । लावे अंग रहसि जन चहै । कोई लिहे कुमकुमा चोवा धनि कब चहैठाढ़ सूख जोवा ॥ कोई वीराकॉछ लीन्हे बीरी कोई परिमल ति सुगंध समीरी । हाथ कस्तूरी मेदू कोइ कि४ लिहे, लागू तस भेदू । पाँतिहि पाँति" चहें दिसि सब सोंधे की होट रचा इंद्रासन, पदमावती कहें पाट । १९ । । (१७) चह्न पाहाँ = चारो ओोर । चाँपे पावै दबाने पाता (१८) गिलावा गारा गच - फ भूले = खो से गए। मसियार = मशाल मछरी = अप्सरा । (१९) खोरी = कटोरी। सिंधोरी = काठ की संदर डिबिया जिसमें स्त्रियाँ ढंगुर या सिंदुर रखती हैं । बीरी - दाँत रंग का मंजन परिमल ==पुष्पगंध, इन । सुगंध समीरी = सुगंध वायुवाला । सोंधे गंद्रव्य