पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/२९४

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११२
पदमावत

११२ कहाँ सो खोएल बिरवा लोना । जेहि होइ रूप औ सोना ॥ का हरतार पार नहि पावा। गंधक काहे कुरकुटा खावा ॥ कहाँ छपाए चाँद हमारा ? । जेहि बिनु रैन जगत चैंधियारा॥ नैन कौड़िया, हिय समुदगुरु सो तेहि मुँह जोति । मन मजिया न होइ पैरे, हाथ न आावे मोति ॥ ३ ॥ का पूछहु तुम धातुनिछोहो !। जो गुरु कोन्ह Jतरपट ओोही॥ सिधि टिका अब मो सँग कहा। भएड , सत हिये न रहा । सो न रूप जासों, मु ख खोलीं । गएड भरोस तहाँ का बोलीं । जहें लोना बिरवा के जाती। कहि के फंदेस आान को पाती ? ॥ के जो पार हरतार करो । गंधक देखि अबह जिज दी । तुम्ह जोरा मयंकू कसूर । पुनि बिछोहि ॥ सा लान्ह कलकू जो एहि घरी मिलावे मोह । सौस देगें बलिहारी ओोह ॥ होइ अबरक ईगुर भया, फेरि गिनि महें दीन्ह । काया पीतर होइ कनक, जी तुम चाहहु कीन्ह ॥ ४ ॥ का बसाइ जी गुरु प्रस बूझा। चकाबू ह अभिमनु ज्यों जूझा विष जो दीन्ह अमृत देखराई। तेहि निछोही को पतियाई ? ॥ मर सोइ जो होइ निगूना। पीर न जाने बिरह बिहूना पार न पाव जो गंधक पीया। सो हत्यार' कहौ किम जया । सिद्धि गुटीका जा पहें नाहीं । कौन धातु पूछहु तेहि पाहीं। अब तेहि बाज रॉग भा डोल। होइ सार तो घर के अबरक के पुनि ईगुर कोन्हा । सो तन फेरि अगिनि महें दीन्हा मिलि जो पीतम बिटुरहि काया अगिनि जरा को तेहि मिले तन तप बु, को अब मुए बुझा ॥ ५ ॥ सुनि के बात सखी सब हँसी। जनहें रैनि तरई परगसीं अब सो चाँद गगन महें छपा। लालच के कित पाबसि तपा ? हमनें न जाहि दह सो कहाँ । करव खोज श्री बिनउव तहां । ऑौ मस कब आाहि परदेसी। करहि मया, हत्या जनि लेसी ॥ डत बिरवा लोना (क) अमलोनी नाम की घास जिसे रसायनी धातु सिद्ध करने के (ख) काम में लाते हैं । (ख) सुंदर वल्ली, पद्मावती । रूप = (क) रूपा । चाँदी। कौड़िया = कौड़िल्ला मछलो पकडने के लिये ऊपर पक्षी जो पानी के (8) निख्होsनिष्ठुर। जो श्रोही = जो उस गुरू (पद्मावती ) को तुमने छिया दिपा है । । रॉग रेंगा। जोरा की = (क) एक बार जोड़ी मिलाकर 2 (तोले भर रॉगे औौर तोले भर चाँदी का दो तोले चाँदी बनाना ख) रसायनियों की बोली में जोड़ा करना कहलाता है। (५) का बसाइ = क्या वश चल सकता है ? बाज = बिना। बर = बल । (६) तपा - तपस्वो। जतिन लेसी = न ले । १. पाठांतर--हरतार ।