पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/३०४

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१२२
पदमावत

१२२ । न जोबन मैमंत बिधाँसा । बिचला बिरह जीउ जो नासा ॥ टूटे अंग , सब भेसा। टी माँग, भंग भए केसा ॥ आग कंचुकि चूरचूर भइ तानी। टूटे हार, मोति दुहरानी ॥ बारीटाँण सलोनी टटी। बातें कंगन कलाई फूटी ॥ चंदन ग्रंग छूट अस भंटी। वेसरि ट टि, तिलक गा मेटी ॥ पुहुप सिंगार सँवार सव, जोबन नवल बसंत । अरगज जिमि हिय लाइ , मरगज कीन्हेउ कंत 1३३। बिनय करै पदमावति बाला। सुधि न, सुराही पिएट पियाला । पिउ प्रायस माथे पर लेजें। जो माँगे नइ नइ सिर देऊँ ॥ प, पिय 4 वचन एक सुन मोरा। चाख, पिया ! मध थोड़े थोरा ॥ पेम सुरा सोई ‘पिया। लखें न बोइ कि कह दिया । चुवा दाख मधु जो एक बारा। दूसरि बार लेत बेसँभारा ॥ एक जो रहा। । बार पी के सुख जीवन, सुख भोजन लहा पान फूल रस रंग करी । धर अधर स चाखा कीज जो तुम चाहो सो करोंना जान भल मंद । जो भावै सो होइ मोहि, तुम्हपिउ ! चहौं अनंद ।।३४। सू, धनि ! पेम सुरा के पिए। मरन जियन डर रहै न हिए जेहि मद तेहि कहाँ संसारा। को घमि रह, की मतवारा । सो क सो मै जान पिये जो कोई । पी न अघाई, जाइ परि सोई ॥ जा कहें बार एक लाहा। न मोहि । हाड़ रहै बिन, ग्राही चाहा अरथ दरव सो देइ बहाई । की सब जाहन जाड़ पियाई ॥ रातिह दिवस रहे रस भीजा। लाभ न देखन देखें छीजा ॥ भोर होत तब पल ह सीरू। खुमारी सीतल पाव नीरू। एक बार भरि देह पियाला, बार बार को माँग : । म हमद किमि न पुकारे, ऐसे दाँव जो खाँग ? ।।३५। भा बिहान उठा रवि साईं। चहें दिसि आाई नखत तराई ॥ सव निसि सेज मिला ससि सूरू । हार चीर बलया भए चूरू ॥ सो धनि पान, चू न भइ चोली। रेंग रेंगोलि निरंग भइ भोली ॥ । (३३) विधॉसि = विध्वंस को गई, बिगड़ गई । जोउ जो नासा = जिसने जीव को दशा बिगाड़ रखो थी। तानोनीवंद । बारी-बालियाँ। अरगज = अरगजा नामक सुगंध द्रव्य जाता है । = जिसका लेप किया मरगज मला दला हा। (३४) नई = नवाकर। (३५) जाइ परि सोई पड़कर सो जाता है। । छीजा = क्षति , हानि । पढह = पनपता है । । () खाँग = कमो हुई ३६ रवि = सूर्य और रत्नसेन । साई = स्वामो। नखत तराई = सखियाँ । बलया स्ट चड़ी । "पान = पके पान सी सफेद या पीलो । चून = चूर्ण । निरंग विवर्णबदरंग ।