पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/३०९

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(२९ ) षट्ऋतु वर्णन खंड पदमावति सब सखी बोलाई। चीर पटोर हार पहिराई ।। सबन्ह के अंदर पूरा । नौ राते सब अंग से दूरा ॥ चंदन चित्र नगर सब भरी। नए चार जानह ' अवता ॥ जनह ढंग फली क ईं। सँग तरई ऊई ।। केवल जनहें चाँद धनि पदमावति, धनि तोर नाह। जेहि अभरन पहिरा सब काहू ॥ बारह प्रभरन, सोरह सिंगारा। तोहि सह नहि ससि उजियारा ॥ सार दूजा ससि सकलंक है नहि पूजा । तू निकलंक, न कोइ ॥ काह्न बीन गहा करकाह' नाद मृदंग । सबन्ह आनंद मनावा, रहसि कृदि एक संग ॥ १ । पदमावत सुनहसहेली। ही सो केंवल कह तुम कुमुदिनि बेली ॥ कलस मानि हों तेहि दिन पूजा आई । चलहु चढ़ावह जाई ॥ मैं पदमावति कर जो बेवान् । जैन परभात परे लखि भानू । आास पास बाजत चौडोला। कुंदुभि, झाँ, तूर, डफ, डोला । एक संग सब सोंधे भरी । देव दुवार उतरि भइ खरी । । अपन हाथ देव नहावा। कलस सहस इक घिरित भरावा ॥ पोता मंडप अगर श्री चंदन । देव भरा अरगज औौ बंदन के प्रनाम आगे भईविनय कीन्ह बह भाँति । है रानी कहा चलढ, घर, सखी ! होति राति ॥ २ ॥ भइ निसि, धनि जस ससि परगसी। रा देखि भूमि फिर बसी ॥ भइ कटकई सरद ससि आावा फरि गगन रवि चाहै छावा ॥ सुनि धनि भौंह । कटाछन्ह धनक फिरि फेराकाम कोरति हे रा॥ जानहु नाहि , प्रिय ! खाँचीं। पिता सपथ ही आाज न बाँचों ॥ रावन संग्रामा । कालिह न होइरही महि रामा। करहु सेन सिंगार महें है सजा । गजपति चाल, अँचल गति धजा ॥ नन समुद नासिका। सरवरि ज को मो सह टिका ?

ो खड़ग

हीं रानी पदमावति, मैं जीता रस भोग । तु सरवरि करु तासीं, जो जोगी तोहि जोग ॥ ३ ॥ (१= ढंग, चालप्रकार। जेहि = जिसकी बदौलत । सौंह =. ) चार सामने। पूजा = पूरा। (२) चौडोल = पालकी (के आासपास) । सोंधे = सुगंध है। बदन = सिद्र या रोली। (३) कटकई = चढ़ाई, सेना का साज। कोरहि हेरा = कोने से ताका। पैज खाँच = प्रतिज्ञा करती हूँ। हौं = मुझसे । रही महि पृथ्वी पर रही = = पड़ी । धजा ध्वजा, पताका । सद = सामने है। १९