पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/३११

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षऋतु वर्णन खंड १२ सीतल , ऊँच चौपारा। हरियर सब देखाइ संसारा ॥ हरियर भूमि, कुसुंभी चोला। औौ धनि पिउ सेंग रचा हिंडोला ॥ पवन झकोरे होइ हरष, लाग सोतल से - बास । धनि जानै यह पवन है, पवन सो अपने पास ॥ ८ ॥ पदमावति थाइ सरद ऋतु भइ अधिक पूनिई पियारी कला। । आसिन चौदसि कातिक चाँद ऋतु उई उजियारी सिंघला ॥ ॥ सोरह कला सिंगार बनावा। नखत भरा सूरज ससि पावा ॥ सेत भा निरमल बिछावन सव अ धरति उजिया अकासू । । हंसि सेज हंसि सँवारि मिलहि कोन्ह पुरुष औ फुलवाकू ना । सोनफल भइ पुलुमी फूली। पिय धनि सौं, धनि पिय स भूली चख ग्रंजन देइ जन देखावा। होइ सारस जोरी रस पावा ॥ एहि ऋतु कता पास जेहि, सुख तेहि के हिय माहें । धनि सि लानें पिउ गरे, धनि गर पिउ के बाद ॥ ८ ॥ ऋतु हेमंत सेंग पिएड पियाला। अगहन पूस सीत सुख काला धनि औो पिछ मह सीड सोहागा। दुर्दान्ह अंग ए मिलि लगा ॥ मन सौं मन, तन सौं तन गहा। हि सर्वे हिय, विचहार न रहा । जानहूँ चंदन लागे अंगा। चंदन रहै न पार्श्व संगा। भोग करह सुख राजा रानी। उन्ह ले वे सब सिस्टि जुड़ाती ॥ जूझ दुव जोबन सौं लागा। बिच गृत सोउ जीउ लेइ भागा। दुई घट मिलि ऐ हो जाहीं। ऐस मिलहि, तबहूं न अपाहीं ॥ हंसा केलि कह जिमि, खुर्शीदह कुरलह दोउ । सीउ पुकारि क के पार भा, जस चकई क बिछोउ ॥ ९ ॥ प्राइ सिसिर ऋ, तहाँ न सोऊ। जहाँ माघ फागुन घर पीऊ । सर सुपेती मंदिर राती। दगल चोर पहिरह बह भौंती ॥ घर घर सिंघल होइ सुख जोऊ । रहा न कतई दुःख कर खोज ॥ हैं । कुसुंभी = कुसुम के (लाल) रंग का । चोला = पहनावा। धनि जानै. . 'पास = स्त्रो समझती है कि वह हर्ष और शोतल वास पवन में है पर वह उस प्रिय में है (उसके कारण हैं) जो उसके पास है । (८) नखत भरा ससि = प्राभूषणों के सहित पदमावती। फुलबास = फूलों से सुगंधित (६) धनि.सोहागा = शोत दोनों के बीच सोहागे के समान है जो सोने के दो टुकड़ों को मिलाकर एक करता है । उन्ह लेखे = उनकी समझ में । विच ह्न त = बोच से । दह कुरलहि = उमंग में क्रीड़ा करते हैं । बिछोउ = बिछोह, वियोग । (१०) सर = चादर। राती = रात में । दगल = दगला, एक प्रकार का अंगरखा या चोला। जोजू = भोग। खोजू = निशानचिह्नपता।