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पदमावत


जहँ धनि पुरुष सीउ नहिं लागा। जानहुँ काग देखि सर भागा॥
जाइ इंद्र सौं कीन्ह पुकारा। हौं पदमावति देस निसारा॥
एहि ऋतु सदा संग महँ सेवा। अब दरसन तें मोर बिछोवा॥
अब हँसि के ससि सूरहि भेंटा। रहा जो सीउ बीच सो भेटा॥

भएउ इंद्र कर आयसु, बड़ सताव यह सोइ।
कबहूँ काहू के पार भइ, कबहुँ काहु के होइ॥१०॥


 

सर बाण , तीर। जानहु काग यहाँ इंद्र के पुत्र जयंत की ओर लक्ष्य है। आयसु भएउ (इंद्र ने) कहा। बड़ सताव यह सोइ यह वही है जो लोगों को बहुत सताया करता है।