पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/३३२

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(३३) देशयाना खंड बोहित भरेचला लेइ रानी। दान माँगि सत देखे दानी ॥ लोभ न की, दीर्थ दान। दान प्रन्नि न होइ कल्यान् ॥ दरब दान देवं विधि कहा । दान मोख होइ, दुःख न रहा । दान प्राहि सब दब क जूरू । दान लाभ होझ, बाँचे मू रू ॥ दान करें रच्छा में नीरा। दान खेइ के लावें तीरा ॥ दान करन दे दृइ जग तरा। रावन सँ चा, अगिनि महें जरा । दान मेरु बड़ेि लागि अकासा। सैति कुबेर मुए तेहि पासा । चालिस ग्रंस दरव जहूँ, एक अंस तह्न मोर । नाहि त जरै कि लू है, की निसि मूसह चोर ॥ १ ॥ सुनि सो दान राजे रिस मानी। केढ़ बौराएसि बौरे दानी ॥ सोई पुरुष दरव जेइ सैती। दरबहि से सुन बात एती दरव गरब क जे चाहा। दरब में धरती सरग बसाहा । दरव में हाथ थाव कबिलासू । दरब में मछरी छाँड़ न पास ॥ दरब निरगुन होइ गुनता। दरब तें दरव रहै भर्ती दिप लिलारा। अस मन दरब देइ को पारा : । ज होड़ रुपता ॥ दरब में धरम करम श्री राजा । दरव में सुद्ध बुद्धि, बल गाजा ॥ कह ! बैरी समुदरे लोभी दरव, न झाँए । भएछ न काह म द। नापन, पेटारी साँ ॥ २ । ग्राधे समुद ते झाए नाहीं। उठी बाउ माँधी उतराहीं । लहरें । भला पंथ॥ उठीं समुद उलथाना, सरग नियराना मदिन आाइ जी पहुँचे काऊ। पीहन उडे बहै सो बाऊ । बोहित चले जो चितउर ताके। भए कुपंथलंक दिसि हाव जो न पारा। सो का गरब करै कंधारा । ? ॥ लेइ भार निबाहि दरब काह उठाताही सधे रुठा ॥ भार सँग न । जेइ संता गह पखान पंखि नहि उड़े। ‘मोर ’ जो बुड मोरकरै सो ॥ (१) ज़रू = जोड़ना । सँचा - संचित किया। दान = दान से । सेंति सहेजकर, संचित करके । सैति = संचित किया। ! (२) एती = इतनी बसाहा - खरीदत है गड़ा रहता है और चमकता माथा (का उदाहरण है असंगति यह इस कहावत के रूप में भी है‘गाड़ा है भंडार; बरत है लिलार') । प्रसिद्ध , पारा सकता है। देइ को = कौन दे । द बंद । (३) उतराहीं : यू =दा हुआा, उत्तर की हवा । अदिन = बुरा दिन । काऊ = कभी । मनहि = मन में ।