पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/३३४

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१५२
पदमावत

१५२ राकस कहा गोसाईं बिनाती। भल सेवक राकस के जाती । जहिया लंक दही श्रीरामा। सेव न छाँड़ा दहि भा सामा ॥ आबहू सेव करों सँग लागे । मनुष भुलाइ होंड तेहि भागे। सेतुबंध जहें राघव बाँधा । तहँवा चढ़ीं भार लेइ काँधा में अब तुरत दान किए पाव । तुरत खेइ श्रोहि बाँध चढ़ावों ॥ तुरत जो दान पानि िदी । थोरे दान बहुत मुनि ली सेव कराइ दानू नाहि, सेवा कर मान ।। जौ टीजौ । दान दिया बझा, सत ना रहा, त निरमल जेहि रूप । आंधी बोहित उड़ाइ हैं, लाड़ कीन्ह अँधप ॥ ७ ॥ जहाँ समुद मझधार मारू। फि पानि पातार दुरू ॥ फिरि फिर पानि ठाँव मोहि मरै । फेरि न निकले जो तहें पर ॥ श्रोहो। मुंव महिरावन पुरी। हलका तर जमकातर छुरी । शाही ठाँव महिरावन मरा। परे हाड जन खरे पडारा । परो रीढ़ जो तेहि के पीठोसेतुबंध । मस श्रावै दीठी ॥ राकस प्राइ तहाँ के ऊरे। बोहित भंवर च महू पह फिरे लगे बोहित तस ग्राँई। जस कोहाँर धरि चाक फिराई ॥ राज कहा, रे राकस ! जानि कि बौरासि सतुध यह दख , तहा कस न लैइ जासि ? सतबंध सुनि राकस हँसा। जानह सरग टूटि भुईं खसा । बाउर तुम देखा। जो बाउरभख लागि सरेखा । पाँखी जो बार्डर घड़े मोटी जीभ बढ़ाई भरी सब चाँटी। बाउर तुम जो भर्ती , कहें माने। तबहि न समझेपंथ भुलाने ॥ महिरावन कै रीढ़ जो परी। कहह सो सेतबंधबुधि खरा । ॥ यह तो पुरी। सरग नियर दुरी । ग्राहि महिरावन जहाँ घर ॥ अब पछिताहु दरब जस जोरा। करह सरग चढ़ि हाथ मरोरा ॥ जो रे जियत महिरावन लेत जगत कर भार । सो मरि हाड़ न लेइगा, अस होइ परा पहार ॥ & ॥ बोहित भंवह भंवे सब पानी । नाचहि राकस आास तुलानी ॥ बड़हि हस्ती, घोर मानवाआाइ । चहें दिसि जुरे फंसखवा ॥ (जहिया = जब। = जिससे ॥ ७) । पानि = हाथ से । हुत = था। (भंड़ारू । = नीचे ८) = दह, गड्ढा । हलका = हिलोर, लहर जेहि बावला होता है तू । तर । बौरासि (8) जो बाउर"सरेखा = पागल भी अपना भक्ष्य ढ ढ़ने के लिय बं। होता है । पाँखी = फतिगा। घर में । घरमाटी = मिट्टी के छरो = छली गई, भ्रांत हुई । (१०) भर्देहि = चक्कर खाते हैं। । = आशा जाती रही । मानवा = मनुष्य । आास तुलानी को बाउर ?