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चित्तौर आगमन खंड

कहतहि बात सखिन्ह सौं, ततखन आवा भाँट।
राजा आइ नियर भा, मँदिर बिछावहु पाट॥३॥

 

सुनि तेहि खन राजा कर नाऊँ। भा हुलास सब ठाँवहि ठाऊँ॥
पलटा जनु वरषा ऋतु राजा। जस असाढ़ आवै दर साजा॥
देखि सो छत भई जग छाहाँ। हस्ति मेघ ओनए जग माहाँ॥
सेन पूरि आई घनघोरा। रहस चाव बरसै चहुँ ओरा॥
धरति सरग अब होइ मेरावा। भरीं सरित औ ताल तलावा॥
उठी लहकि महि सुनतहि नामा। ठाँवहि ठावँ दूब अस जामा॥
दादुर मोर कोकिला बोले। हुत जो अलोप जीभ सब खोले॥

 

होइ असवार जो प्रथमै मिलै चले सब भाइ।
नदी अठारह गंडा मिलों सनुद कहँ जाइ॥४॥

 

बाजत गाजत राजा आवा। नगर चहूँ दिसि बाज बधावा॥
बिहँसिइ आइ माता सौं मिला। राम जाइ भेंटी कौसिला॥
साजे मंदिर बंदनवारा। होइ लाग बहु मंगलचारा॥
पदमावति कर आव बेवानू। नागमती जिउ महँ भा आनू॥
जनहुँ छाँह महँ धूप देखाई। तैसइ भार लागि जौ आई॥
सही न जाइ सवति कै झारा। दुसरे मंदिर दीन्ह उतारा॥
भई उहाँ चहुँ खंड बखानी। रतनसेन पदमावति आनी॥

 

पुहुन गंध संसार महँ, रूप बखानि न जाइ।
हेम सेत जनु उघरि गा, जगत पात फहराइ॥५॥

 

बैठ सिंघासन, लोग जोहारा। निधनी निरगुन दरव बोहारा॥
गति दान निछावरि कीन्हा। मँगतन्ह दान बहुत कै दीन्हा॥
लेइ कै हस्ति महाउत मिले। तुलसी लेइ उपरोहित चले॥
बेटा भाइ कुँवर जत आवहि। हँसि हँसि राजा कंठ लगावहिं॥
नेगी गए, मिले अरकाना। पँवरिहि बाजै घहरि निसाना॥
मिले कुँवर, कापर पहिराए। देइ दरब तिन्ह घरहिं पठाए॥
सब कै दसा फिरी पुनि दुनी। दान डाँग सबही जग सुनी॥


(४) दर = चाव । रहत चाव= आनंद उत्साह। लहकि उठो = लहलहा उठी। हुत = थे। अठारह गंडा नदी = अवध में जन साधारण के बीच है कि समुद्र में अठारह गंडे (अर्थात् ७२) नदियाँ मिलती हैं। (५) बेवान = विमान। जिउ महँ भा आनू = जो में कुछ और भाव हुआ। झार = (क) लपट, (ख) ईर्ष्या, डाह। जौ = जव। उतारा दीन्ह= उतारा। हेम सेत = सफेद पाला या बर्फ। (६) बहुत कै = बहुत सा। जत = जितने। अरकाना = अरकाने दौलत, सरदार, उमरा। दुनी = दुनिया में। डाँग = डंका।