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नागमती-पद्मावती-विवाद खंड

साम जाँबु कस्तूरी चोवा। आँव ऊँच हिरदय तेहि रोवाँ॥
तेहि गुन अस भइ जाँबु पियारी। लाई आनि माँझ कै बारी॥
जल बाढ़ बहि इहाँ जो आाई। है पाकी अमिली जेहि ठाईं॥
तुँ कस पराई बारी दुखी। तजा पानि; धाई मुहँ सूखी॥
उठे आागि दुइ डार अभेरा। कौन साथ तहँ बेरी केरा॥
जो देखा नागेसर बारी। लगे मरै सब सूआ सारी॥

जो सरवर जल बाढ़ रहै सो अपने ठाँव।
तजि के सर औ कुंडहि जाइ न थर अँबराब ॥ ३ ॥

 

तुइँ अँबराव लीन्ह का जूरी? । काहे भई निम विषमूरी॥
भई बैरि कित कुटिल कटैली। तेंदू टेंटी चाहि कसैली॥
दारिउँ दाख न तोरि फुलवारी। देखि मरहिं का सूआ सारी? ॥
औ न सदाफर तुरँज जँभीरा। लागे कटहर बड़हर खीरा॥
कँवल के हिरदय भीतर केसर। तेहि न सरि पूजै नागेसर॥
जहँ कटहर ऊमर को पूछे? । बर पीपर का बोलहि छूँछै॥
जो फल देखा सोई फीका। गरब न करहिं जानि मन नीका॥

रह आपनि तू बारी, मो सौं जूझु, न बाजु।
मालति उपम न पूजै, बन कर खूझा खाजु ॥ ४ ॥

 

जो कटहर बड़हर झड़बेरी। तोहि असि नाहीं; कोकाबेरी! ॥
साम जाँबु मोर तुरंज जँभीरा। करुई नीम तौ छाह गँभीरा॥
नरियर दाख ओहि कहँ राखौं। गल गल जाऊँ सवत नहि भाखों॥
तोरे कहे होइ मोर काहा? । फरे बिरिछ कोइ ढेल न बाहा॥
नवै सदाफर सदा जौ फरई। दारिउँ देखि फाटि हि मरई॥
जयफर लौंग सोपारि छोहारा। मिरिच होइ जो सहै न झारा॥
हौं सो पान रंग पूज न कोई। विरह जो जरे चून जरि होई॥

लाजहिं बूड़ि मरसि नहिं, उभि उठावसि बाँह।
हौं रानी, पिय राजा; तो कहँ जोगी नाह॥५॥

 

हौ पदमिनी मानसर केवा। भँवर मराल करहिं मोरि सेवा।
पूजा जोग दई हम्ह गढ़ी। श्री महेस के माथे चढ़ी॥


(३) अनु = और। तजा पानि = सरोवर का जल छोड़ा। अभेरा = भिड़ंत, रगड़ा। सारी = सारिका: मैना। सरवर जल = सरोवर के जल में। बाढ़ै = बढ़ता है। (४) तुइँ अँबराव...जूरी = तूने अपने अमराव में इकट्ठा ही क्या किया है? ऊमर = गूलर। न बाजु = न लड़। खूझा खाजु = खर पतवार, नीरस फल। (५) झड़बेरी = झड़बेर, जंगली बेर। कोकाबेरी = कमलिनी। गलगल जाऊँ = (क) चाहे गल जाऊँ; (ख) गलगल नीबू। सवति नहिं भाखौं = सपत्नी का नाम न लूँ। कोई ढेल न बाहा = कोइ ढेला न फेके (उससे क्या होता है) । ऊभि = उठाकर। (६) केवा = कमल।