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पदमावत

भौंहें साम धनुक जनु चढ़ा। बेझ करै मानुस कहँ गढ़ा॥
चंद क मूठि धनुक वह ताना। काजर पनच बरुनि बिष बाना॥
जा सहुँ हेर जाइ सो मारा। गिरिवर टरह भौंह जो टारा॥
सेतबंध जेइ धनुष बिड़ारा। उहौ धनुष भौंहन्ह सौं हारा॥
हारा धनुष जो वेधा राहू। और धनुष कोइ गनै न काहू॥
कित सो धनुष मैं भौंहन्ह देखा। लाग बान तिन्ह आउ न लेखा॥
तिन्ह बानन्ह झाँझर भा हीया। जो अस मारा कैसे जीया?॥

 सूत सूत तन बेधा रोवँ रोवँ सब देह।
नस नस महँ ते सालहिं हाड़ हाड़ भए बेह॥ ७ ॥

 

 नैन चित्र एहि रूप चितेरा। कँवल पत्र पर मधुकर फेरा॥
समुद तरंग उठहिं जनु राते। डोलहिं औ घूमहि रस माते॥
सरद चंद महँ खजन जोरी। फिरि फिरि लरै बहोरि बहोरी॥
चपल विलोल डोल उन्ह लागे। थिर न रहै चचल बैरागे॥
निरखि अघाहिं न हत्या हुँते। फिरि फिरि स्त्रवनन्ह लागहिं मते॥
अंग सेत मुख साम सो ओही। तिरछे चलहिं सूध नहिं होही॥
सुर नर गंध्रब लाल कराहीं। उलथे चलहिं सरग कहँ जाहीं॥

 अस वै नयन चक्र दुइ, भंवर समुद उलथाहिं।
जनु जिउ घालि हिंडोलहिं लेइ, आवहिं लेइ जाहिं॥ ८ ॥

 

नासिक खड़ग हरा धनि कीरू। जोग सिगार जिता औ बीरू॥
ससि मुँह सौहँ खड़ग देइ रामा। रावन सौं चाहै संग्रामा॥
दुहु समुद्र महँ जनु बिच नीरू। सेतुबंध बाँधा रघुबीरू॥
तिल के पुहुप आस नासिक तासू। औ सुगंध दीन्ही बिधि बासू॥
हीर फूल पहिरे उजियारा। जनहुँ, सरद ससि सोहिल तारा॥
सोहिल चाहि फूल वह ऊँचा। धावहिं नखत न जाइ पहूँचा॥
न जनौ कैस फूल वह गढ़ा। बिगसि फूल सब चाहहिं चढ़ा॥

 वह फूल सुबासित, भएउ नासिका बंध।
जेत फूल ओहि हिरकहिं, तिन्ह कहँ होइ सुगंध ॥ ९ ॥

 

(७) बेझ करै = बेध करने के लिये। पनच = पतंचिका, धनुष की डोरी। बिराड़ा = नष्ट किया। धनुष जो बेधा राहू = मत्स्यबेध करनेवाला अर्जुन का धनुष। आउ न लेखा = आयु को समाप्त समझा। बेह = वेद, छेद। (८) नैन चित्र चितेरा = नेत्रों का चित्र इस रूप से चित्रित हुआ है। चितेरा = चित्रित किया गया। बहोरि बहोरि = फिर फिर। फिरि फिरि = घूम घूमकर। मते = सलाह करने में। अँग सेत ओहीं = आँखों के सफेद डेले और काली पुतलियाँ। लाल = लालसा। (९) कीरू = तोता। सोहिल तारा = सुहेल तारा जो चंद्रमा के पास रहता है। बिगसि फूल चढ़ा = फूल जो खिलते हैं मानों उसी पर निछावर होने के लिये।