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बादशाह चढ़ाई खंड

ऊपर कनक मँजूसा, लाग चँवर औ ढार।
भलपति बैठे भाल लेइ, औ बैठे धनुकार ॥२६॥

 

असुदल गजदल दूनौ साजे। औ घन तबल जुझाऊ बाजै॥
माथे मुकुट, छत्र सिर साजा। चढ़ा बजाइ इंद्र अस राजा॥
रथ सेना सब ठाढ़ी। पाछे धुजा मरन कै काढ़ी॥
चढ़ा बजाइ चढ़ा जस इंदू। देवलोक गोहने भए हिंदू॥
जानहुँ चाँद नखत लेइ चढ़ी। सूर कै कटक रैनि मसि मढ़ा॥
जौ लगि सूर जाइ देखरावा। निकसि चाँद घर बाहर आवा॥
गगन नखत जस गने न जाहीं। निकसि आए तस धरती माहीं॥

देखि अनी राजा कै, जग होइ गएउ असूझ।
दहुँ कस होवै चाहै, चाँद सूर के जूझ॥२७॥

 



(२६) रजवारा = राजद्वार। दरपन = चार आईन:, बकतर। लोहे सारी = लोहे की बनी। अंबारी = मंडपदार हौदा। सिरी = माथे का गहना। रूँदे = रौंदते है। कमलली = खलबलाई। मँजूसा = हौदा। ढार = ढाल। भलपति = भाला चलानेवाले। (२७) असुदल = अश्वदल। देवलोक इंद्र = जैसे इंद्र के साथ देवता चलते हैं वैसे ही राजा रत्नसेन के साथ हिंदू लोग चले। सूर कै कटक = बादशाह की फौज। रैनि मसि = रात की अँधेरी। चाँद = राजा रत्नसेन। नखत = राजा की सेना। अनी = सेना। होवै चाहै = हुआ चाहता है।