पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/३८८

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पदमावत

उठा बाँध, चहु दिसि गढ़ बाँधा। कीजै बेगि भार जस काँधा॥
उपजे आगि आगि जस बोई। अब मत कोइ आन नहिं होई॥
भा तेवहार जो चाँचरि जोरी। बलि फाग अब लाइव होरी॥
समदि फाग मेलिय सिर धूरी। कीन्ह जो साका चाहिय पूरी॥
चंदन अगर मलयगिरि काढ़ा। घर घर कीन्ह सरा रचि ठाढ़ा॥
जौहर कहँ साजा रनिवासू। जिन्ह सत हिये कहाँ तिन्ह आँसू॥

पुरुषन्ह खड़ग सँभारे, चंदन खेवरे देइ। मेहरिन्ह सेंदुर मेला, चहहिं भई जरि खेइ॥१७॥

 

आठ वरिस गढ़ छेंका रहा। धनि सुलतान कि राजा महा॥
आइ साह अबँरावँ जो लाए। फरे भरे पै गढ़ नहिं पाए॥
जौ तोरौं तो जौहर होई। पदमिनि हाथ चढ़ै नहिं सोई॥
एहि बिधि ढील दीन्ह, तब ताई। दिल्ली तै अरदासै आई॥
पछिउँ हरेव दीन्हि जो पीठी। सो अब चढ़ा सौंह कै दीठी॥
जिन्ह भुइँ माथ गगन तेइ लागा। थाने उठे, आव सब भागा॥
उहाँ साँह चितउर गढ़ छात्रा। इहाँ देस अब होइ परावा॥

जह जिन्ह पंथ न तृन परत, बाढ़े बेर बबूर।
निसि अँधियारी जाई तब, बेगि उठै जौ सूर॥ १८ ॥

 

कीजै बेगि काँधा = जैसा भारी युद्ध आपने लिया है उसी के अनुसार कीजिये यही सलाह सबने दी। (१७) समदि = एक दूसरे से अंतिम विदा लेकर। साका कीन्ह = कीर्ति स्थापित की है। चाहिय पूरी = पूरी होनी चाहिए। सरा = चिता। जौहर = गढ़ घिर जाने पर जब राजपूत गढ़ की रक्षा नहीं देखते थे तब स्त्रियाँ शत्रु के हाथ में न पड़ने पाएँ इसके लिए पहले ही से चिता तैयार रखते थे। (जब गढ़ से निकलकर पुरुप लड़ाई में काम आ जाते थे तब स्त्रियाँ चट चिता में कूद पड़ती थीं यहीं जौहर कहलाता था।) खेबरे = खौर लगाई। मेहरिन्ह = स्त्रियों ने। खेह = राख। (१८) आइ साह अँबराव पाए = बादशाह ने आकर जो आम के पेड़ लगाए वे बड़े हुए, फलकर झड़ भी गए पर गढ़ नहीं टूटा। जो तोरौं = बादशाह कहता है कि यदि गढ़ को तोड़ता हूँ तो। अरदासैं = अर्जदाश्त, प्रार्थनापत्र। हरेव = हेरात प्रदेश का पुराना नाम। थाने उठे = बादशाह की जो स्थान स्थान पर चौकियाँ थीं वह उठ गई। जिन्ह बबूर = जिन जिन रास्तों में घास भी उगकर बाधक नहीं हो सकती थी उनमें अब बादशाह के न रहने से बेर और बबूल उग आए हैं।