पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/३९३

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(४५) बादशाह भोज खंड

छागर मेढ़ा बड़ औ छोटे। धरि धरि माने जहँ लगि मोटे।
हरिन, रोझ, लगना बन बसे। चीतर गोइन, झाँख औ ससे॥
तीतर, बटई, लवा न बाँचे। सारस, कूज, पुछार जो नाचे॥
धरे परेवा पंडुक हेरी। खेहा, गुड़रू और बगेरी॥
हारिल, चरग, चाह बँदि परे। बन कुक्कुट, जल कुक्कुट धरे॥
चकई चकवा और पिदारे। नकटा, लेदी, सोन सलारे॥
मोट बड़े सो टोइ टोइ धरे। ऊबर दूबर खुरुक न, चरे॥

कंठ परी जब छूरी, रकत ढुरा होइ आँसु।
कित आपन तन पोखा, भखा परावा माँसु ? ॥ १ ॥

 

धरे माछ पढ़िना औ रोह। धीमर मारत करै न छोहू॥
सिधरी, सौरि, धरी जल गाढ़े। टेंगर टोइ टोइ सब काढ़े॥
सींगी भाकुर बिनि सब धरी। पथरी बहुत बाँब बनगरी॥
मारे चरख औ चाल्ह पियासी। जल तजि कहाँ जाहिं जलवासी?॥
मन होइ मीन चरा सुख चारा। परा जाल को दुख निरुवारा?॥
माँटी खाय मच्छ नहि बाँचे। बाँचहिं काह भोग सूख राँचे?॥
मारै कहँ सब अस कै पाले। को उबार तेहि सरवर घाले?॥

एहि दुख काँटहि सारि कै, रकत न राखा देह।
पंथ भुलाइ आइ जल बाझे, झूठे जगत सनेह ॥ २ ॥

 

(१) रोझ= नीलगाय। लगना = एक वनमृग। चीतर = चित्रमृग। गोइन = कोई मृग (?)। झाँख = एक प्रकार का बड़ा जंगली हिरन; जैसे ठाढ़े ढिग बाघ, बिग, चिते चितवत झाँख मृग शाखामृग सब रीझि रीझि रहे हैं।-—देव। ससे = खरहे। पुछार = मोर। खेहा = केहा, बटेर की तरह की एक चिड़िया। गुड़रू = कोई पक्षी। बगेरी = भरद्वाज, भरुही। चरग = बाज की जाति की एक चिड़िया। चाह = चाहा नामक जलपक्षी। पिदारे = पिद्दे। नकटा = एक छोटी चिड़िया। सोन, सलारे = कोई पक्षी। खुरुक = खटका। (२) पढ़िना पाठीन मछली, पहिना। रोहू, सिधरी, सौरी, टेंगरा, सींगी, भाकुर, मथरी, धनगरी, चरख, पियासी = मछलियों के नाम। बाँब = बाम मछली जो देखने में साँप की तरह लगती है। चाल्ह = चेल्हवा मछली। निरुवारा = छुड़ाए। राँच = अनुरक्त, लिप्त। तेहि सरवर धाले = उस सरोवर में पड़े हुए को कौन बचा सकता है (जीवपक्ष में संसार सागर में पड़े हुए को कौन उद्धार कर सकता है?) एहि मुख...देह = इसी दुःख से तो मछली ने शरीर में काँटे लगाकर, रक्त नहीं रखा।