पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/३९८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

(४६) चित्तौरगढ़ वर्णन खंड

जेवाँ साह जो भएउ बिहाना। गढ़ देखै गवना सुलताना॥
कँवल सहाय सूर सँग लीन्हा। राघव चेतन आगे कीन्हा॥
ततखन आइ बिवाँन पहूँचा। मन तें अधिक, गगन में ऊँचा॥
उघरी पावँरी चला, सुलतानू। जानहु चला गगन कहँ भानू॥
पवँरी सात, सात खँड बाँके। सातौ खंड गाढ़ दुइ नाके॥
आजे पवँरि मुख भा निरमरा। जौ सुलतान आइ पग धरा॥
जनहुँ उरेह काटि सब काढ़ी। चित्र क मूरति बिनवहिं ठाढ़ी॥

लाखन बैठ पवँरिया, जिन्ह तें नवहि करोरि।
तिन्ह सब पवँरि उधारे, ठाढ़ भए कर जोरि॥ १ ॥

 

सातौं पवँरी कनक केवारा। सातौं पर बाजहिं घरियारा॥
सात रंग तिन्ह सातौं पवँरी। तब तिन्ह चढ़ै परैं नव भँवरी॥
खंड खंड साज पलँग औ पीढ़ी। जानहुँ इंद्रलोक कै सीढ़ी॥
चंदन बिरिछ सोह तहँ छाहाँ। अमृत कुंड भरे तेहि माहाँ॥
फरे खजहजा दारिउँ दाखा। जो ओहि पंथ जाइ सो चाखा॥
कनक छत्र सिंघासन साजा। पैठत पँवरि मिला लेइ राजा॥
बादशाह चढ़ि चितउर देखा। सब संसार पाँव तर लेखा॥

देखा साह गगन गढ़, इंद्रलोक कर साज।
कहिय राज फुर ताकर, सरग करै अस राज ॥ २ ॥

 

चढ़ि गढ़ ऊपर संगति देखी। इद्रसभा सो जानि बिसेखी॥
ताल तलावा सरवर भरे। औ अँबराब चहूँ दिसि फरे॥
कुआँ बावरी भाँतिहि भाँती। मठ मंडप साजै चहुँ पाँती॥
राय रंक घर घर सुख चाऊ। कनक मँदिर नग दीन्ह जड़ाऊ॥
निसि दिन बाजहिं मादर तूरा। रहस कूद सब भरे सेंदूरा॥
रतन पदारथ नग जो बखाने। घूरन्ह माँह देख छहराने॥
मँदिर मँदिर फुलवारी बारी। बार बार बहु चित्र सँवारी॥


(१) जेवाँ = भोजन किया। बिहान = सबेरा। मन तें अधिक = मन से अधिक वेगवाला। पवँरि = ड्योढ़ी। गाढ़ = कठिन। नाके = चौकियाँ। जिन्त तें नवहिं करोरि = जिनके सामने करोड़ों आदमी आवें तो सहम जायँ। (२) घरियारा = घंटे। फिरै = जब फिरे। भँवरी = चक्कर। पीढ़ी = सिंहासन। लेखा = समझा, समझ पड़ा। फुर = सचमुच। (३) संगति = सभा। सुख चाउ = आनंद मंगल। मादर = मर्दल, एक प्रकार का ढोल। घूरन्ह = कूड़ेखानों में। छहराने = बिखरे हुए।