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चित्तौरगढ़ वर्णन खंड

राजै लोन सुनावा, लाग दुहुन जस लोन।
आए कोहाइ मँदिर कहँ, सिंघ छान अब गोन॥८॥

 

राजा कै सोरह सै दासी। तिन्ह महँ चुनि काढ़ी चौरासी॥
बरन बरन सारी पहिराई। निकसि मँदिर तें सेवा आई॥
जनु निसरीं सब बीरबहूटी। रायमुनी पींजर हुँत छूटी॥
सबै परथमै जोबन सोहैं। नयन बान औ सारँग भौहैं॥
मारहिं धनुक फेरि सर ओही। पनिघट घाट धनुक जिति मोही॥
काम कटाछ हनहिं चित हरनी। एक एक तें आगरि बरनी॥
जानहुँ इंद्रलोक तें काढ़ी। पाँतिहि पाँति भई सब ठाढ़ी॥

साह पूछ राघव पहँ, ए सब अछरी आहिं॥
तुइ जो पदमिनि बरनी, कहु सो कौन इन माहि॥ ९ ॥

 

दीरघ आउ, भूमिपति भारी। इन महँ नाहिं पदमिनि नारी॥
यह फुलवारि सो ओहि के दासी। कहँ केतकी भँवर जहँ वासी॥
वह तो पदारथ, यह सब मोती। कहँ ओहि दीप पतँग जेहि जोती॥
ए सब तरई सेव कराहीं। कहँ वह ससि देखत छपि जाहीं॥
जौ लगि सूर के दिस्टि अकासू। तौ लगि ससि न करै परगासू॥
सुनि कै साह दिस्टि तर नावा। हम पाहुन, यह मँदिर परावा॥
पाहुन ऊपर हेरै नाहीं। हना राहु अर्जुन परछाहीं॥

तपै बीज जस धरती, सूख विरह के घाम।
कब सुदिस्टि सो बरिसै, तन तरिवर हो जाम॥ १० ॥

 

सेव करैं दासी चहुँ पासा। अछरी मनहुँ इंद्र कविलासा॥
कोउ परात कोउ लोटा लाई। साह सभा सब हाथ धोवाई॥
कोई आगे पनवार बिछावहिं। कोई जेंवन लेइ लेइ आवहिं॥
माँड़े कोइ जाहिं धरि जूरी। कोई भात परोसहिं पूरी॥


लोन जस लाग = अप्रिय लगा, बुरा लगा। कोहाइ = रूठकर। मंदिर = अपने घर। छान = बाँधती है। गोन = रस्सी। सिंघ...गोन। सिंह अब रस्सी से बँधा चाहता है। (९) रायमुनी = मुनिया नाम की छोटी सुंदर चिड़िया। सारँग = धनुष। (१०) आउ = आयु। कहँ केतकी बासी = वह केतकी यहाँ कहाँ है (अर्थात नहीं है) जिसपर भौंरे बसते हैं। पदारथ = रत्न। जौ लगि सूर परगासू = जब तक सूर्य ऊपर रहता तब तक चंद्रमा का उदय नहीं होता; अर्थात् जब तक आपकी दृष्टि ऊपर लगी रहेगी तब तक पद्मिनी नहीं आएगी। हेरै = देखता है। हना राहु अर्जुन परछाहीं = जैसे अर्जुन ने नीचे छाया देखकर मत्स्य का वध किया था वैसे ही आपको किसी प्रकार दर्पण आदि में उसकी छाया देखकर ही उसे प्राप्त करने का उद्योग करना होगा। सूख = सूखता है। (११) पनवार = बड़ा पत्तल। माड़े = एक प्रकार की चपाती।‌ जूरी = गड्डी लगाकर।