पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/४०८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२२६
पदमावत

जेहि कारन गढ़ कीन्ह अगोठी। कित छाँड़े जौ आवै मूठी॥
सत्रुहि कोउ पाव जौं बाँधी। छोड़ि आपु कहँ करै बियाधी॥
चारा मेलि धरा जस माछू। जल हुँत निकसि मुवै कित काछू॥
सत्रू नाग पेटारी मूँदा। वाँधा मिरिग पैग नहिं खूँदा॥

राजहिं धरा, आनि कै, तन पहिरावा लोह।
ऐस लोह सो पहिरै, चीत सामि कै दोह ॥ ३ ॥

 

पायन्ह गाढ़ी बेड़ी परी। साँकर गीउ, हाथ हथकरी॥
औ धरि बाँधि मँजूषा मेला। ऐस सत्रु जिनि होइ दुहेला!॥
सुनि चितउर मँह परा बखाना। देस देस चारिउ दिसि जाना॥
आजु नरायन फिरि जग खूँदा। आजु सो सिंघ मँजूषा मूँदा॥
आजु खसे रावन दस माथा। आजु कान्ह कालीफन नाथा॥
आजु परान कंस कर ढीला। आजु मीन संखासुर लीला॥
आजु परे पंडव वँदि माहाँ। आजु दुसासन उतरी बाहाँ॥

आजु धरा बलि राजा, मेला बाँधि पतार।
आजु सूर दिन अथवा, भा चितउर अँधियार ॥ ४ ॥

 

देव सुलेमाँ के बँदि परा। जहँ लगि देव सबै सत हरा॥
साहि लीन्ह गहि कीन्ह पयाना। जो जहँ सत्रु सो तहाँ बिलाना॥
खुरासान औ डरा हरेऊ। काँपा विदर, धरा अस देऊ! ॥
बाँधौं, देवगिरि, धौलागिरी। काँपी सिस्टि, दोहाई फिरी॥
उवा सूर, भइ सामुहँ करा। पाला फूट, पानि होइ ढरा॥
दुंदहि डाँड़ दीन्ह, जहँ ताईं। आइ दंडवत कीन्ह सवाई॥
दुंद डाँड़ सब सरगहि गई। भूमि जो डोली अहथिर भई॥

बादशाह दिल्ली महँ, आइ बैठ सुख पाट।
जेइ जेई सीस उठावा धरती धरा लिलाट ॥ ५ ॥

 

हबसी बँदवाना जिउबधा। तेहि सौंपा राजा अगिदधा॥


अगोटी = अगोठा, छेका, घेरा। जल हुँत काछू = वही कछुवा है जो जल से नहीं निकलता और नहीं मरता। सत्रू मूँदा = शत्रु रूपी नाग को पेटारी में बंद कर लिया। पैग नहिं खूंदा = एक कदम भी नहीं कूदता। चीत सामि कै दोह = जो स्वामी का ओह मन में विचारता है। (४) ऐसे शत्रु दुहेला = शत्रु भी ऐसे दुःख में न पड़े। बखाना = चर्चा। जग खूँदा = संसार में आकर कूदे। मूँदा = बद किया। मीन = मत्स्य अवतार। पंडव = पांडव। (५) देव = (क)राजा; (ख) दैत्य। सुलेमाँ = यहूदियों के बादशाह सुलेमान ने देवों और परियों को वश में किया था। बंदि परा = कैद में पड़ा। सतहरा = सत्य छोड़े हुए, बिना सत्य के। धरा अस देऊ = कि ऐसे बड़े राजा को पकड़ लिया। दुंदुभि = कुंदुभी या नगाड़े पर। डाँड़ दीन्ह = डंडा या चोट, मारी। (६) बँदवाना = बंदीगृह का रक्षक, दारोगा। जिउबधा = बधिक, जल्लाद। अगिदधा = आग से जले हए।