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देवपाल दूती खंड

भँवर बास बहु फूलन्ह लेई। फूल बास बहु भँवरन्ह देई॥
दूसर पुरुष न रस तुइ पावा। तिन्ह जाना जिन्ह लीन्ह परावा॥
एक चुल्लू रस भरै न हीया। जौ लहि नहिं फिर दूसर पीया॥
तोर जीवन जस समुद हिलोरा। देखि देखि जिउ बूड़ै मोरा॥
रंग और नहिं पाइय वैसे। जरे मरे बिनु पाउब कैसे?॥

देखि धनुक तोर नैना मोहि लाग विष बान।
बिहँसि कँवल जो मानै, भँवर मिलावौं आन॥१४॥

 

कुमुदिनि! तुइ बैरिनि नहीं धाई। तुइ मसि बोलि चढ़ावसि आई॥
निरमल जगत नीर कर नामा। जौ मसि परै होइ सो साभा॥
जहँवा धरम पाप नहि दीसा। कनक सोहाग भाँभ जस सीसा॥
जो मसि परे होइ ससि कारी। सो मसि लाइ देसि मोहिं गारी॥
कापर महँ न छूट मसि अंकू। सो मसि लेइ मोहिं देसि कलंकू॥
साम भँवर मोर सूरुज करा। और जो भँवर साम मसि भरा॥
कँबल भँवर रवि देखै आँखी। चंदन बास न बैठे माखी॥

साम समुद मोर निरमल रतनसेन जग सेन।
दूसर सरि जो कहावै सो बिलाइ जस फन॥१५॥

 

पदमिनि! पुनि मसि बोल न बैना। सो मसि देखु दुहूँ तोरे नैना॥
मसि सिंगार, कार सब बोला। मसि क बुंद तिल सह कपोला॥
लोना सोइ जहाँ मसि रेखा। मसि पुतरिन्ह तिन्ह सौं जग देखा॥
जो मसि घालि नयन दुहूँ लीन्ही। सो मसि फेरि जाइ नहिं कीन्ही॥
मसि मुद्रा दुइ कुच उपराहीं। मसि भँवरा जे कँबल भँवाहीं॥
मसि केसहि, मसि भौंह उरेही। मसि बिनु दसन सोह नहिं देही॥
सो कस सेत जहाँ मसि नाहीं?। सो कस पिड न जेही न परछाहीं?॥

अस देवपाल राय मसि, छत्र घरा सिर फेर।
चितउर राज बिसरिगा, गए जो कुंभलनेर॥१६॥

 

सुनि देवपाल जो कुंभलनेरी। पंकजनैन भौंह धनु फेरी॥
सत्रु मोरे पिउ कर देवपालू। सो कित पूज सिंघ सरि भालू?॥


दूसर पुरुष= दूसरे पुरुष का। वैसे=बैठे रहने से, उद्योग करने से। आन=दूसरा। (१५) धाई=धाय,धात्री। मसि चढ़ावसि=मेरे उपर तू स्याही पोतती है। जस सीसा=जैसे सीसा नहीं दिखाई पड़ता है। लाइ=लगाकर। कापर=कपड़ा। सारि=(क) बराबरी का; (ख) नदी। (१३) घालि लीन्ही=डाल रखी है। मुद्रा=मुहर। उपराहीं=ऊपर। भँवाहीं=घूमते हैं। कँवल= कमल को, कमल के चारो ओर। सो कस...नाहीं=ऐसी सफेदी कहाँ जहाँ स्याही नहीं, अर्थात स्याही के भाव के बिना सफेदी की भावना हो ही नहीं सकती। पिंड=साकार वस्तु या शरीर। जेहि=जिसमें। (१७) भौंह धनु फेरी=क्रोध से टेढ़ी भौं की। सरि पूज=बराबरी को पहुँच सकता है।