पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/४२०

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२३८
पदमावत

२३८ पदमावत ए फिरौकरों चहें चन पुकारा। जटा पकका सीस सँभारा ? ॥ हिरदय भीतर पिछ बसेमिले न पूछों काहि ? सून जगत सब लारी, मोहि बिनु कछ नहि त्राहि ॥ ३ ॥ सवन छेद महें मुद्रा मेला । सबद मोनाऊँ कहाँ पिउ खेला तेहि वियोग सिंगी निति पूरी । बार बार किंगरी लेइ दूरों ॥ को मोहि लेइ पिउ कंठ लगावें। परम प्रधारी बात जनाबे । पाँवरि टूटि चलतपर छाला। मन न मरेतन जोबन बाला ॥ गइर्ड पयाग मिला नहि पीऊ। करवत लीन्ह, दीन्ह बलि जीऊ । जाइ बनारस जारिडें कया। पारि पिंड हाइकें गया जगन्नाथ जगरन के : श्राई। पुनि दुबारिका जाई नहाई ।। जाइ कदार दाग तन, तहें न मिला तिन्ह अंक । ढ़ढ़ि अयोध्या आाइ, सरग दुवारी झाँक ।। ४ । गउमृद्ध हरिद्वार फिर कीन्हिऊँ। नगरकोट कटि रसना दीन्हिकें । टूडि सो बालनाथ कर टीला। मथरा मथिलेंन पिउ मीला ।। सुरूजकुंड महें जारि * देहा । बद्री मिला न जासकें नेहा ॥ रामकुंड , गोमती, गुरुद्वारू। दाहिनवरत कीन्ह के बारू ! कलास, सुमेरू । गइर्दू मलकपुर जहाँ कुबेरू बरम्हावरत ब्रह्मावति परसी। बेनी संगम सीति करसी ।। नीमषार कुरुक्षेता। " मिसरिख गोरखनाथ अस्थान समेता ॥ पटना पूरब सो घर घर, हाँईि फिरिर्द्ध संसार । हेरत कहूँ न पिउ मिला, ना कोइ मिलवन्हा : ५ ॥ बन बन सब हेड नव खंडा। जल जल नदी अठारह गडा ॥ चौंसठ तीरथ के सब ठाऊँ। लेत फिरिमोहि पिउ कर नाई ॥ चहें चल : खट में है। ) श्रोनाॐ = पृथ्वी के चारों । चाहि =(४झकती हूँ, भूककर कान लगाती हूँ। सवद प्रोनाखें.खला =ाहट लेने के लिये कान लगाए रहती हूँ कि प्रिय कहाँ गया। = सूखती हूँ । अधारी सहारा देनेवालो। पर = पड़ता है । । बाला = नवीन। जगरन जागरण । दाग = दागामुद्रा । = उस प्रिय । , तप्त लीतिन्ह काऑाँक = चिह्नपता। सरगदवारी अयोध्या में एक । (५गउमुख , गंगोत्तरी का वह स्थान)= गौमुख तीर्थस्थान जहाँ से गंगा निकली है। । नगरकोट = नागरकोट, जहाँ देवी का स्थान है । कटि रसना । दोन्हि जीभ काटकर चढ़ाई । बालनाथ कर टीला = पजाब में सिंध और लम के बीच पड़नेवाले नमक के पहाड़ों की एक चोटी । मीला = मिला। सुरुजकुंड = अयोध्या, हरिद्वार नादि कई तीर्थों में इस नाम के कुंड हैंमें अलकपुर । । बद्री = बदरिकाश्रम । वैौबारू=कई बार। = अलकापुरी ब्रह्मावति = कोई नदी करसी =करीपाग्नि में; उपलों की आग में 1 हडिफिरिटें = छान डाला ; ढूंढ़ डाला, टटोल डाला।