पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/४२८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२४६
पदमावत

२४६ पदमावत जेहि खड़ग मोंडे तेहि गाढ़ी । जहाँ न खड़ग मोंछ नहि दाढ़ी ॥ घर तब मुंह मोडजीउ पर खेलौं । स्वामि काज इंद्रासन पेल ॥ पुरुष बोलि के टरे न पाए। दसन गयद, गीज नहि काबू तुइ अबला, धनि : कुव धि वृधि, जाने काह जुझार। जेहि पुरुषहि हि बौर रंस, भावै तेहि ने सिंगार जो तुम चहरू जूभि, पि! बाजा। कीन्ह सिंगार जू में साजा ॥ जोबन श्राइ सह होड़ रोपा। बिखरा बिरहकाम दल कोपा॥ बहेउ बीररस संदूर माँगा। राता रुहिर खड़ग जस नाँगा । भौंहें धन्क नैन रस साधे । काजर पवन, बरुनि बिप बाँधे ॥ जन कटाड स्यों सान संवारे। नखसिख बान मनियारे ॥ मेल अलक फाँस गिउ मेल असूझा। अधर अधर सौं चाहजूझा ॥ कुंभस्थल कुच दोउ में मंता । पेलों सौह, सँ भारहु, केती ? कोप सिंगार, बिरह दल, टि होड़ इइ ग्राध । पहिले मोहि संग्राम है, कैरह जह के साध एक बिनति न माने नाहाँ । आागि परी चित उर धनि माहाँ ॥ उठा जो धूम नैन करवाने । लागे पर ग्रॉसु झहाने ॥ भीन हार, चीर दिय चोली। रही अछूत कंत नहि खोली ॥ भीजी अलक छुए मंडन। भीजे कंवल भंवर सर फदन ।। कटि चइ चइ काजर अचर भीजा। तब न पिउ कर रोवें पसीजा। जो तुम कंत ! जू मैं जिज काँधा। तुम किय साहस, में सत बाँधा॥' रन जूमि जिति प्रावह । लौज होइ जो पीठेि देखावह संग्राम तुम्ह पिछ साहस बाँधा, मैं दिय माँग सेंद्र। दोउ सँभारे होड , बार्ल मादर तुर : ८ । मोटे दसन गयद मूछे। हाथी के समान कालू = वह के दाँत हैं (जो निक लकर पीछे नहीं जाते), कछुए की गर्दन के समान नहीं, जो जरा सी ग्राहट पाकर पीछे घुस जाता है । (७) बाजा चहढ = लड़ा चाहते हो। = पनच धनप की डोरी । मनियारे = नुकीले, तीखे । कोप = कोषा है। मुझ से । मोहि = (८) चित उर = (क) मन और हृदय में, (ख) चित्तौर । फ्रांगि परी माहाँ = इस पंक्ति में कवि ने ग्रागे चलकर चित्तौर की स्त्रियों के सती होने का संकेत भी किया " करवाने = कड़वे धुंए से दुखने लगे । कटिमंडन = करधनी। पुंदन = चोटी का फ्लरा । १. कई प्रतियों में यह पाठ है--- झाँड़ि , हिरदय देइ दाह। निष्ट र नाह आापन ।। चला नहि काह सवें सिंगार भीजि भूई ची। छार मिलाइ कंत नहि छूवा रोए न बहुरें, तेहि रोए कत का काज ? कंत धरा मन जूझ रन, धनि साजा सर साज ॥