पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/४३०

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२४८
पदमावत

२४८ राजा बँदि जेहि के सौंपना। गा गोरा तेहि पद आगमना ॥ टका लाख दस दीन्ह कोरा। विनती कीन्हि पायें गहि गोरा ॥ बिनवा अब रानी नाई बादशाह सौं जाई । पदमावति ।। विनती क, श्राइ हाँ दिल्ली। चितउर के मोहि स्यों है किल्लो ॥ बिनती कर, जहाँ है पूंजी। सच डार के मोहि स्यो रैली । एक घरी जौ अज्ञा पावों। राजहि सौंपि नंदिर महें आवीं । तब रखवार गए सुलतानी। देखि डैकोर ए जस पानी ॥ लीन्ह अँोर हाथ जेहि, जीउ दीन्ह तेहि हाथ। जहाँ चलादे तहूँ चलेफेरे फिरे न माथ ॥ ३। लोभ के नदी डैकोरारहै हाथ जौ बोरा पाप । सत्त न जहूँ औोर तनीक न राजू । ठाकुर के विनासे काबू भा जिउ घिछ । दरव चंडोल न हेरा ॥ रखवारन्ह केरालोभ जाइ साह भागे सिर नावा। ए जगसूर ! चाँद चलि ग्रावा । । जावत । हैं सव नखत तराई। सोरह से चंडल सग्राई । चितउर जेति राज के पूंजी। लेइ सो भाइ पदमावति क्रूज ॥ विनती करें जोरि कर खरी। लेइ सौंप राजा एक घरी । इहाँ उहाँ कर स्वामी : दुम जगत मोहि आास । पहिले दरस , तौ पठवह कबिलास ॥ ४ देखावह आाज्ञा भई, जाइ एक घरी। छि जो घरी फेरि विधि भरी। चलि विवान राजा पद श्रावा। मैं ग चंडोल जगत सब छावा ॥ पदमावति के भेस लोहारू। निकसि काटि दि कीन्ह जोहारू ।t। उठा कोपि जस छूटा राजा। चढ़ा तुरंग, सिंघ अस गाजा ॥ गोरा बादल खड़ काहे । निकसि कुंवर चढ़ि चढ़ भए ठाढ़े । तीड तुरंग गगन सिर लागा। केहूँ जुगुति करि की बागा ॥ जो जिउ ऊपर खड़ग सँभारा। मरनहार सो सहसन्ह । मारा ॥ भई प्रकार साह स, ससि औौ नखत सो नादि । छरई गरासा, गहन गरासे ॥ ५। गहन जाहि . (३) में, सुपुर्दगी में सौंपना - देखरेख । गमना नागे, । कोर- मैंट, , रिश्वत । स्यो के साथ, पास 1 किल्ली -- क्रेजी। पानी भए= = पहले नरम । हाथ = जिसके हो गए जेहि हाथ से । (४) घिउभा = पिघल कर नरम हो गया । न हेरा = तलाशी नहीं ली, जाँच नहीं की । इहां कर उहाँ स्वामी मेरा पति राजा । कविलास = स्वर्गयहाँ शाही महल । (५) , भरी = जो घड़ा खाली था ईश्वर ” ने फिर अर्थात् भरा, अच्छी घड़ी फिर पलटी । जस = ही जैसे । जिउ उपर = रक्षा के लिये । के गहन । प्राण छर जाहि = जिनपर छल से ग्रहण लगाया था वे ग्रहण लगाकर जाते हैं ।