पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/४३२

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पदमावत

पदमावत घा फिरि मागे गोरा तब हाँका। खेलीं, कॐ नाजु रन साका ॥ हाँ कहिए धौलागिरि गोराटारे, अंग न मोरा ॥ Iट न । सोहिल जैस गगन उपराहीं । मेघ घटा मोहि देखि बिलाहीं ।। सहसौ सीस सेस सम लेखों। सहस नैन इंद्र सम देखीं । चारिउ भुजा चतुरभुज ग्राउ से कम न रहा और को तै। हीं होइ भोम आाज रन गाजा । पीछ ल गवं राजा ।। होइ हनुत जमकतर ढाहों । भाजू स्वामि साँकरे निबाहीं । होइ नल नील छाज हों, देहूँ समुद महें मेंड़ । कटक साह कर टेक, होइ सुमरु रन सोनई चहें दिसि घटा आाई। मेघ झरि ।। डोले नाहि देव अस यादो। पहें वे ग्राड तुरुक सब बादा ॥ हि ान लाई हाथन्ह गहे खडग हरद्वानी। चमकहि सेल के | वोज कं बानी । सभबान ग्रावहि गाजासीस जनु जस । बाकि डरे बाजा ॥ नेजा उड़े रे मन इंद्र , बाज क ।। छाड़ न जानि हिद्र गोरे साथ लोन्ह । सव साथो। जस ममत सू दिन हाथी सव मिलि पहिलि उठौनी कन्हों। श्रावत आाइ हाँक | रन दीन्हीं एंड मुंड अब टूटहि, म्यों बखतर प्रm क . ई । तुरय होलुि बिनु काँधे, हस्ति हि बिनु सू x 1१७I तुलानी मानवत श्राइ । सेन सुलतानी। । जानm । परलय नाव लोहे सेन सव एक कहें न सूचे कारो। तिल सूझ उधारी। खड़ ग फोलाद रुक सब काढ़े । रे बी प्रम चमकहि पीलवान गज पेले :। जानकाल कह दु३ जन जमकात करसि सव भवाँ बाँचे । जिउ लेइ चाहि सरग आपसवाँ ॥ सल चाहहिं काढ़ि मुद्र । सरप जन। डसा। लेहि जिक विप बसा। टतें साँकरे = सकट पूरा। बाद (६) हाँका = ललकारा । गोरा = (क) गोरा सामंत, (ख) श्वेत । सोहिल = सुहैलतारा। राजा = रत्नसेन को पहाड़ या धम्स के पीछे रखकर । स! , ग्र गस्त्य । उंगने = टीला या धस्स। । पीछे घालि में। निवाही = निस्तार करें। वेंड माड़ा । ( शादी के बिल्कुल = खैड़ा, १०) देव = दैत्य | थी । बानो = कांति, चमक। गाजा व शत्रु । हरद्वानी =हरट्टान की तलवार प्रसिद्ध कहीं पहले जानकार मुर्भपर न पड़े । गोरे = गोरा ने। उठौनो = पहला = । इंदू = इंद्र । आाइ न बाज वा। स्यों = साथ। ड= को टोपी लड़ाई में है (११) लोहे जो पहनी जाती। श्रोन्वत = झुकती गौर उमड़ती हई। लोह = लोहे से । की है। फोलाद = फौलाद। करहि द फ = चोरना चाहते हैं टकडे। जमकात = यम का खाँड़ाएक खाँड़ा । भवाँ कह , प्रकार का यूमते हैं ! = चाहते हैं । सेल = बरले । सरप = सौंप । अपसवाँ चहहि चल देना त्र सू = दिखाई