पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/४३३

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गोरा बादल युद्ध खंड २५५ तिन्ह सामुद गोरा रन कोपा। अंगद सरिस पाँव भु ईं रोपा ॥ सुपुरुष भागि न जानेभुईं जौ फिरि फिर लेइ। सूर गहे दोऊ कर, स्वामि काज जि दे ॥ ११ ॥ भझे बगमेल, सेल घनघोरा। औ गज पेल, अकेल सो गोरा । सहस कुंवर सहसौ सत बाँधा। भार पहार जूम कर काँधा ॥ लगे मैं गोरा के अगे। बाग न मोर घाव मुख लागे । जैस पतंग प्रागि चैंसि लेई । एक मुवे, दूसर छि देई ॥ टूटह सीस, अधर धर मारै । लोहि कंधहि कंध निराएं । कोई परह रुहिर होइ राते । कोई घायल थ महि माते ॥ कोइ बुरखेह गए भरि भोगी। भसम चढ़ाई परे होइ जोगी ।। घरी एक भारत भा, भाद असवारन्ह मेल । जू िज़्बर सब निबरे, गो रहा अकेल ५१२। । गोरें देख साथि सब जूझा। यापन काल नियर भभा, बूझा ।। वोपि सिंघ सामुर्दा रन मैला 1 लाखन्ह साँ नहि मर अकेला ॥ लेड हाँकि हस्तिन्ह के ठटा। जैसे पवन बिदारी घटा । जेहि सिर देइ कोपि करबारू । स्यों घोड़े टू ट असवारू । लोट दि सीस कबंध निनारे। माठ मजीठ जनहु रन हारे । खेलिफाग से दूर छिटर कावा। चांवरि इंलि अागि जनु लावा ॥ हस्ती घोड़ धड़े जो चूका। ताहि कीन्ह सो रुहिर भभूका ॥ भइ अज्ञ सुलतानी, 'वेगि करहु एहि हाथ । रतन नागे, लिए पदारथ साथ १३ जात हैं “" ॥ सर्वे कटक मिलि गोरह का। गजत सिंघ जाइ नहि टेका । जेहि दिस उठं सोइ जनु खावा। पलटि सिंध तेहि ठावें न आाबा ॥ तुक बोलावहबाहाँ1 गोरें ॥ बोले मीलू धरी जिज माहर्ता भुईं लेइ = गिर पड़े । सूर = = का बाग शुलभाला। (१२) बगमेल घोड़ों से बाग मिलाकर चलाना, सवारों की पंक्ति का धावा। प्रधर धर मारे - धड़ या कबंध अधर में बार करता है । कंध = धड़ । निरा’ = बिल्कुलयहां से वहाँ तक (अवध ) । भोगी = भोगविलास करनेवाले सरदार थे । भारत = घोर युद्ध। कुंवर = गोरा के साथी राजपूत । निबरे= समाप्त हुए। (१३ ) गोरे = गोरा ने । करवारू = करवाल, तलवार । स्यो = साथ । = कट जाता है । निनारे = अलग । चूका = का । रुहिर = रुधिर से। भभूका = अंगारे हा। सट टेका लाल = पकड़ा । एहि । हाथ पलटि करहु सिंह = इसे आावा पकड़ो= । जहाँ (१४ से ) भाग जत बढ़ता = ग है रजत वहाँ पीछे हटकर नहीं आता । बोले बाहाँ = (वह मुंह से नहीं बोलता है) उसकी बाहें खड़कती हैं । गोरै = गोरा ने ।