पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/४३५

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गोरा बादल यदु खंड २५२ तीसर खड़ग कूड़ पर लावा । काँध गुरुज हुत, घाव न आावा ॥ तस मारा हठि गोरे, उठी व लू के आागि । कोइ निथरे नहिं श्राव , सिंघ सद्रह लागि 1१६। -तत्र सरजा कोपा बरिबंडा। जनह। सदूर केर भजदंडा ॥ कोपि गरजि मारेसि तस बाजा। जानह प टि सिर “गाजा ॥ ठाँठर ट, फूट सिर तासू । स्यों सुमेरु जन टूट अकासू ॥ ‘धमकि उठा सब सरग पताफिर गइ दीटि, फिरा संसारू ॥ भइ परलय घस सवा जाना काढ़ा बरग सरग नियराना !। तस मासि स्यों घोड़े काटा। धरती फाटि, सेस फन फाटा। जो अति सिह बरो होइ वाई । सारइल सौ कौनि वड़ाई ? ॥ गोरा परा खेत महँसूर पहुँचावा पान । बादल लेइगा राजा, लेइ चितउर नियरान 1१७। काँध गुरुज हुत = वधे पर गुर्ज था ( इससे) । लागि = मठभेड या यद्ध में । (१७) बारबडा = बलवान । सद्र = शादल । तस बाजा = ऐसा आघात पड़ा । ठठर = ठ्ठरी । फिरा संसारू = आंखों के सामने संसार न रह गया। स्यों = सहित : सुर पहुँचावा पान = देवताओों ने पान का बीड़ा अत् स्वर्ग का निमंत्रण दिया।