पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/४३९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

(५५) रत्नसेन देवपाल युद्ध खंड सुनि देवपाल राय कर चालू । राजहि कठिन परा हिंय सालू ॥ दादुर कतईं केंवल कहें पेखा। गादुर भुख न सूर कर देखा ॥ अपने रंग जस नाच मयरू। तेहि सरि साध करै तमरू ॥ जौ लगि प्राइ तुरुक गढ बाजा। तौ लगि धरि मानीं तो राजा हैं। नीद लीन्ह, रौनि होत बिहान जाइ गढ़ लागा ॥ न सब जागा। कुंभलनेर शुभम गढ़ बाँका। विषम पंथ चढ़ जाइ न झाँका। राजहि तहाँ गएड लेइ कालू । हो रोपा देवपालू ॥ साम्ह । द्वत्र अनो सनमुख भर्दलोहा भएछ प्रसूम । सत्र जति तब नेवर, एक दुबौ महें जून ॥ १ ॥ जो देवपाल राव रन गाजा। मोहि तोहि जूझ एकौका, राजा ! । मेलेसि साँग प्राइ विष भरी। मेटि न जाड़ काल के घरी ॥ ग्राइ निकसी नाभि पर साँग बईटी। नाभि वेधि सो पीटी । चला मारितव । , धड़ भएछ निनारा , राजे माराट्ट कंध॥ सीस बैरी काiट के बाधा । पावा दावं वैर जस साधा। । जियत फिरा । माँ बाट होई ग्राए बल भरालोहे धरा ॥ कारी घाव जड़ नहि डोला। रही जीभ जम गही, को बोला ? ॥ सुधि बुधि तौ सब बिसरीमार, परा मश बाट । हस्त घोर को काकर ? घर आानी गइ खाट ॥ २ ॥ --:०: । (१) पेखा = देखता है । गादुर = चमगादर । सूर = सूर्य । सरि = बरा बरीभएजु = युद्ध हुआ। नेवरे = समाप्त हो, निबटे ' (२) एकौझा = । लोहा अकेले, दें युद्ध । चला मारि..मारा = वह भाला मारकर चला जाता था। तब राजा रत्नसेन ने फिरकर उस पर भी वार किया। । वैरी - शत्रु देवपाल को 3 माँ बाट.धरा = आधे रास्ते पहुँचकर हथियार छोड़ दिया। । कारी =. गहाभारी। भार परा बाट = बोभ की तरह राजा रत्नसेन बीच रास्ते में गिर पड़े ।