पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/४६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( २६ )


प्रकार सूफियों का प्रेमयोग भी अज्ञात के प्रति होता है; पर इस प्रकार के परोक्षवाद या योग के चमत्कार पर ध्यान जाने पर भी वर्णन के अनौचित्य की ओरर बिना गए नहीं रह सकता। जब कोई व्यक्ति निर्दिष्ट ही नहीं तब कहाँ का प्रेम और कहाँ का वियोग? उस कामदशा में पद्मावती को धाय समझा ही रही है कि हीरामन सूत्रा आकर रत्नसेन के रूप गण का वर्णन करता है और पद्मावती उसकी प्रेमव्यथा और तप को सुनकर दया और पूर्वरागयुक्त होती है। का प्रारंभ पद्मावती में यहीं से समझना चाहिए। अतः इसके पहिले योग की दुहाई देकर भी वियोग का नाम लेना ठीक नहीं जँचता।

विवाह हो जाने के पीछे पद्मावती का प्रेम दो अवसरों पर अपना बल दिखाता है। एक तो उस समय जब राजा रत्नसेन के दिल्ली में बंदी होने का समाचार मिलता है और फिर उस समय जब राजा यद्ध में मारा जाता है। ये दोनों अवसर विपत्ति के हैं। साधारण दष्टि से एक में प्राशा के लिये स्थान है, दूसरे में नहीं। पर सच्च पहुंचे हए प्रेमी के समान प्रथम स्थिति में तो पद्मावती संसार की ओर दृष्टि रखती हुई विह्वल और क्षुब्ध दिखाई पड़ती है; और दूसरी स्थिति में दूसरे लाक का और दष्टि फेरे हए पूर्ण पानंदमयी और प्रशांत। राजा के बंदी होने का समाचार पाने पर रानी के विरहविह्वल हृदय में उद्योग और साहस का उदय होता है वह गोरा और बादल के पास आप दौड़ी जाती है और रो रोकर अपने पति के उद्धार का प्रार्थना करती है। राजा रत्नसेन के मरने पर रोना धोना नहीं सुनाई देता। नागमती और पद्मावती दोनों श्रृंगार करके प्रिय से उस लोक में मिलने के लिये तैयार होती हैं। यह दृश्य हिंदू स्त्री के जीवनदीपक की अत्यंत उज्ज्वल और दिव्य प्रभा है जो निर्वाण के पूर्व दिखाई पड़ती है।

राजा के बंदी होने पर जिस प्रकार कवि ने पद्मावती के प्रेमप्रसूत साहस का दृश्य दिखाया है उसी प्रकार सतीत्व की दढ़ता का भी। पर यह कहना पड़ता है कि कवि ने जो कसौटी तैयार की है वह इतने बड़े प्रेम के उपयुक्त नहीं हुई है। कुंभलनर का राजा देवपाल रूप, गुण, ऐश्वर्य, पराक्रम, प्रतिष्ठा किसी में भी रत्नसेन का बराबरी का न था। अतः उसका दूती भेजकर पद्मावती को बहकाने का प्रयत्न गड़ा हया खंभा ढकेलने का बालप्रयत्न सा लगता है। इस घटना के संनिवेशसे पद्मावती के सतीत्व की उज्ज्वल कांति में और अधिक प्रोप चढ़ती नहीं दिखाई देती। यदि वह दुती दिल्ली के बादशाह की होती और वह दिल्लीश्वर की सारी शक्ति और विभूति का लोभ दिखाती तो वभूति का लोभ दिखाती तो अलबत यह घटना किसी हद तक इतने बड़े प्रेम की परीक्षा का पद प्राप्त कर सकती थी, क्योंकि देवलदेवी और कमलादेवी के विपयाचरण का दृष्टांत इतिहासविज्ञ जानते ही हैं।

पद्मावती के नवप्रस्फुटित प्रेम के साथ साथ नागमती का गार्हस्थ्यपरिपुष्ट प्रेम भी अत्यंत मनोहर है। पद्मावती प्रेमिका के रूप में अधिक लक्षित होती है, पर नागमती पतिप्राणा हिंदू पत्नी के मधुर रूप में ही हमारे सामने आती है। उसे पहले पहल हम रूपविता और प्रेमविता के रूप में देखते हैं। ये दोनों प्रकार के गर्व दांपत्य सुख के द्योतक हैं। राजा के निकल जाने के पीछे फिर हम उसे प्रोषितपतिका के उस निर्मल स्वरूप में देखते हैं जिसका भारतीय काव्य और संगीत में