पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/४६९

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आखरावट ८७ पृह बास जस हिरदय, रहा नन नियरे से सुठि नीयरे, ओोहट से सुटि दूरि । सरठा दुव दिस्टि टत लाइ, दरपन जो देखा चहै । दरपन जादू देखाइ, मुहमद तौ मुख देखिए ॥ ४१ S ठा छाडेढ़ कलंक झेहि नाहीं। केहु न बराबरि तेहि परछाहीं । सूरज तपे परै अति घाम् । लागे गहन गहन होइ सामू । सेसि कलंक का पटतर दीन्हा। घटे बहैसे गहने लीन्हाँ ॥ नागि बुझाड़ जो पानी परई। पानि सूख, भाटी सब सरई ॥ सब जाइहि जरे जग महें होई। सदा संरबदा अहथिर सोई ॥ निहकलंक निरमल सब अंगा। अस नाहीं केहू रूप न रंगा । जो जाने सो भेद न कहई । मन महें जान बूमि चुप रहई ॥ दाहा के के ठाकुर सुनि मति क, कहै जो हिय मझियार । बहुरि तासों क, टाकुर दूजी बार ॥ न मत। सोरठा गगरी सह पचास, जो कोउ पानी भरि धरे । सूरज दिपे अकास, मुहमद सब महें देखिए ॥ ४२ ॥ ना नारद तब रोइ पुकारा। एक जोलाहै सौं, मैं हारा। प्रेम में निति ताना तनई। जप तप सावि मैकरा भरई ॥ दब गरब सब बिथारी। गनि साथी सब लेहि भारी।। दइ पाँच चत माँडी गनि मल । मोहि स मोर न एक चलई । बिधि कहें सबरि साज सो सार्ज लेइ लेइ नार्वे कूच सौ मजे ॥ । ओोहट = अलगदूर । मुख = ईश्वर का रूप । (४२) छाठेहुनाहीं तुमने उस ईश्वर को छोड़ दिया जो निष्कलंक है । केह = कोई । सामू = श्याम, गहने लीन्हा = गहन से लिया गया, ग्रस्त हश्रा (यह प्रयोग बहुत प्राचीन है, इसी कर्मवाच्य से के प्रयोग बने हैं प्रयोग आाजकल कर्जे वाय ) । सरईमड़ती है । रूप रंगा = न रूप में, न रंग में । मति ठाकुर ‘बार . = -=। न पने अंतकरण में ईश्वर की सलाह सुनकर जो उस हृदय की बात को बाहर कहता है । उससे फिर ईश्वर दूसरी बार सलाह नहीं करता। गगरी सहस = प्रतिबिंबवाद का यह उदाहरण बहुत पुराना है। । (४३) तंतु - तागा”। बिथारी = बिखेर दे । मडी = कलप जो कपड़े पर दिया जाता है । कूच =जुलाहो की छू ची। २८