पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/४८३

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आखिरी कलाम ३० तने पर सब सवह उठाव। पुल सरात कर पंथ रेंगावों ॥ पाछे जिए पूछों अब लेखा। नैन माहें जेता हीं देखा जस जाकर सरन मैं सुना। धरम प, गुन छौगुन गुना ॥ के निरल कौसर अवार्थों 1 पुनि जोउन्ह बैकुंठ पठाव मरन रॉजन घन होइ जस, जस दुख देखत लग । तस तब होइ ‘मुहम्मद, दिन दिन मान भाग ।।२२। । हिले जिaउवकाज । सेबक चारि । तिन्ह सब काजे पटाउस विराईल ग्रो मै काईल । सराफील औ अजराईल ॥ जिव रईल परथिवीं महूँ अाए। कहें । आाइ मुहम्मद गोहराए जिरईल जन ाड़ पुकारव। नाबें मुहम्मद लेत हैंाव ॥ हड़हैं जहाँ ना। कह3 लाख वोलिहैं एक ठा। । महम्मद ढ ढ़त रहै, क तक नहि पावै । फिरि के जाइ मारि गोह रावै । कहै ‘गोसाईं ! कहाँ है पावों। लाखन बोले जो रे बोलावणे ।। सव धरती फिरि आएऊँजहाँ नाव सो ले ऊँ ॥ २ लाखन उर्ट मुहम्मदलेहि कहें उत्तर देखें ?'।। जिबराइल पुनि आायस पावै । संघ जगत ठाँव सो पावे ॥ ास सुवास है जहाँ । नाव रसूल पुकरस तहाँ' लेड जिराइल फिरि सिरविीं पाए। सौंघत जगत टाँव सो पाए । उठहें मुहम्मद, होटू बड़ नेगी। देन जोहार बोलाबहि बेगी। बेगि तारे समेता। श्रावह साथ उगत तरत सब लता। ।। एतने कचन ज्योति मुख काढ़े । सुनत रसूल भए उठेि ठाढ़े जसच पाए लगि जीव मुकहि । अपने अपने पिंजरे ग्राए ॥ कइड ज् गन के सोवतउठे लोग मनो नागि । श्रम सब कहैं ‘मुहम्मद', नैन पलक ना लागि ।।२४। उठत उ मत कहें आलस लागे । नींद मेरी सोबत नहिं जागें । । पोढ़स बार न हम कहें एऊ। अबहिन अवधि श्राइ कब गएऊ। । जिवराइल राव कह पूकारी अनहूँनींद न गई म्हारी सोवत तुहि कइज्जु गबीते। ऐसे तो तुम मोहे, न चीत (२२) पुल सरत = वह पुल नि से कयामत के दिन सब जीवों को पार करना पडेगा और जो पुण्यात्माों के लिये खास चौड़ा और पापियों के लिये बाल दराबर पतले हो जायगा। । बसर = विहित स्वर्ग ) की एक नदी या चश्मा। = , ) का काज = एक जन गंजन, पीड़ाबलेश। (२३एक काम पर । गोहराए = पुकारा । मरि गोहरावे के बहुत पुकारता है । (अवधी ) के लिये । (२४) नेगो = प्रसाद या इनाम पानेवाले । जुहार देन = बंदगी उमत = उम्मत, पैगंबर के अनुयायियों का समूह । मुकहि पाए = कब्रों से छूट । पाए। पिंजरे = ग्रयत् शरीर । (२५) पढ़त = लेटते या गोते । बार = देर अबहिन = अभो ही; इतनी जल्दी ।