पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/४८४

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३०२
आखिरी कलाम

३०२ आखिरी कलाम कइड करोरि बरस ? ईं प रे । उछहु न गि मुहम्मद खरे सुनि के जगत उठिहि सब झगे। जेतना सिरजा पुरुष नौ नःी ॥ गT नाँग उठहै संस1नैना २९ सव के ता कोइ न केहू तन हे, दिटि सरग सब केर। ऐसे जतन मुहम्मद, सिस्टि ' चले सत्र रि।।२५। । पुनि रसूल जह होइ मागे ' उम्मत चलि सब पाछे लाने ॥ अध गियान हो सब केरा। ऊंच नीच जहें होड़ मरा सवहीं जियत चहें संसारा । नैनन नीर चले असरारा ॥ सो दिन सेंदरि उमत सत्व वै । ना जाना था कस होवे। जो न रहै, तेहि का यह संगा ? मुख सूखे तेहि पर यह दंगा । जेहि दिन कहें नित करत डरावा। सोड़ दिवस अब आागे ग्रावा। जौ पे हमसे लेखा लेवा। का हम जहब, उतर का देवा ॥ एत सब सँवरि के मन महूँचहैं जाड़े सो भलि । पैगह पैग ‘मुहम्मद, चित्त रहै सव लि ।।२६। पुल सरात शनि होड़ शुभेरा । लेखा लेब उत सब केरा ॥ एक दिसि वैठि मुहम्मद रोइहैं । जिबरईल दूसर दिति होइहैं। । वार पार किय सूझत नाहीं। दूसर नाहि, को टेके बाहीं ? ! तीस सहस्त्र कोप क बाटा। ग्रस साँकरि जेहि चले न चाँटा । बारह में पतरा आम झीना। खड़ग धार से अधिक पैना । दोउ दिसि नरक बुड है भरे। खोज न पाउंव तिन्ह महें परे देखत काँपे ला जाँघा। सो पथ कैसे जै. है ॥ नत्रा तहाँ चलत सब परखव, को रे पू, को ऊन । अब हि को जान ‘मुहम्मद, भरे पाप औ पून २७ जो धरम होइईि संसारा। चमक बीज अस जाइहि पारा ॥ बहुतक जनों तुग भल धदृहैं । बहुतक जानु पडे हैं बहुतक चाल चले महें जइहैं । बहुतक मरि मरि पाँव उठहैं ! बहतक जान पखेरु उड़इहैं। पवन के नाई तेहि महें जइहै । बहतक जान रेंगह चाँटीबहैं माटी । । बहतक दाँत धरि । बहृतक । पीठ नरक फंड महें गिरहीं बहुतक रक्त महें परहीं । जेहि के जाँघ भरोस न होई। स पंथी निभरोसी रोई ॥ बरे = = खड़े । तारू = तालू में । नेहु तन = किसी की मोर । ऐसे जतन इस ढंग से, इस प्रकार ।' (२६) अस रारा = लगातार । चित्त झलि रहै = मन में बार बार जाया करता है । (२७) अभेरा = सामना । चाँटा = चींटी । खोज = पता, निशान । उन = त्रुटिपूर्णग्रोथ। (२८) बीज विजली । चाल चले महें = मनुष्य की साधारण चाल से । तरास = नास ।