अजमोदा ज्ञानकोष (अ)६१ अजयगढ़ काममै इसके उपयोगमें अड़चन पड़ती है। इसका | परन्तु सन्धिकी शतीका उससे पालन न हो सकने के संप्रक्त जलद्रव (१००० भाग गर्म जल और १ कारण १८०६ ई० में कर्नल मार्टिनडेलने चढ़ाई भाग अजमोदल) विषैली फुडिया क्षत इत्यादिमें करके वह देश छीन लिया। इस प्रान्तका बहुत मलहम पट्टीके काम में आता है। बड़ा भाग उस समय वख्तसिंहके राज्यमें शामिल अजमोदा- इसे अंग्रेजी में (Celery Seed) किया गया। १८१२ ई० में नयी सनद तयार करके कहते हैं। यह अजवाइनकी एक किस्म है। यह सारा मुल्क उसमें मिला लिया गया। इसके पेड़ वार्षिक होते हैं । हिन्दुस्तानमें १८३७ ई० में बख्तसिंहकी मृत्यु हो गई। यह पेड़ अनेक स्थानमें पैदा होता है। बंगालमें इसका लड़का माधवसिंह गद्दी पर बैठा, परन्तु इसकी खेती अधिक प्रमाणमें की जाती है। वह भी बहुत समय तक टिकने न पाया। १८४६ इसकी ऊँचाई लगभग डेढ़ हाथ होती है, सफ़ेद ई० में उसकी मृत्यु के कारण गद्दी फिरसे खाली हो रंगके छोटे छोटे फूल आते हैं। साग, भाजी | गई। उसके पश्चात् महीपतसिंह गद्दी पर बैठा । मसालों में भी अजमोदा छोड़ते हैं और अजीर्ण किन्तु १८५३ ई० में उसकी मृत्युके पश्चात् उसके होने पर भी देते हैं । ( पदे-वनौषधि गुणादर्श ) | पुत्र विजयसिंहको गद्दी मिली। परन्तु वह भी अजयगढ़-(गज्य ) यह मध्य भारतमें दो वर्ष बाद मर गया। उसे पुत्र न होनेके कारण बुन्देलखण्ड पोलिटिकल एजेन्सीके श्राधीन एक गद्दीको कोई वारिस न रहा और राज्य अंग्नेजौकी छोटी सी रियासत है। उत्तर अक्षांश २४५- देखरेखमें आ गया। इसी समय गदर (१८५७) २५७ और पूर्व रेखा०७६५० से २०२१ । इसका शुरू हुआ। इस समय राजाकी माँ ने छांग्रेजोंसे क्षेत्रफल ७७१ वर्गमील है। यह विध्यपर्वतके शत्रुता न कर मित्रताका बर्ताव किया। इसलिये भीतरी भागमें है। पर्वत और घाटियोंसे यह राज्यको जन्त न करके विजयसिंहके भाई रणजोर कई भागोंमें विभक्त है । इनमें केन और वैर्मा नदी सिंह (दासी पुत्र) को गद्दीका वारिस मुकर्रर बहती हैं। यहाँकी वृष्टिकी औसत ४७ इञ्च है । कर दिया। १८५४ ई० में उसे गद्दी पर बैठाया। अजयगढ़के राजा छत्रसालके वंशज बुन्देले : १८६२ ई० में रणजोरसिंह को गोद लेनेकी सनद राजपूत हैं। १७३१ में राजा छत्रसालने अपने मिली। १८७७ ई० में 'सवाई'का खिताब वंशपरम्परा राजके कई हिस्से कर दिये थे। उसमेंसे एक के लिये मिल गया । १८६७ ई० में उसे के० ३१ लाखका प्रान्त उसके तीसरे पुत्र जगतराजको सी० आई० ई० का खिताब मिला। इसको ११ मिला। जगतराजको मृत्युके पश्चात् उसके पुत्र तोपोंकी सलामी का मान है। इसे १८६६ ई० में पहाड़ सिंह और उसके भाईके लड़के खुमानसिंह पहला पुत्र उत्पन्न हुआ था। उसका नाम राजा या गुमानसिंहसे झगड़ा होने लगा। वहादुर भूपालसिंह था। आखिरमें गुमानसिंहको बाँदा प्रान्त तथा इस राज्यमें पौराणिक दृष्टि से अजयगढ़ के अजयगढ़ का किला मिलनेपर यह झगड़ा तय हुआ। किलेके अतिरिक्त दो महत्वपूर्ण स्थान हैं। जय- उसके पश्चात् गुमानसिंहका भतीजा बख्तसिंह गढ़ के उत्तर-पूर्वमें १५ मीलपर एक गाँवहै । वहाँ वाँदाकी गद्दी पर बैठा। उसे १७६२ ई० में पर एक बड़ा शहर स्थित था। उस शहरको अलीबहादुरने निकाल बाहर किया और वह दाने १९६५ से १२०३ ई० तक चन्देल राज्यके अन्तिम दानेके लिये तरसने लगा। १-३० ई० में जय राजा परमाल देवके प्रधान बच्छराजने बसाया बुन्देलखण्ड अंग्रेजोके हाथमें आया, उस सयय था। दूसरा स्थान गंजसे २ मील पर स्थित उन्होंने वख्तसिंहकी ३०००० रु. की पेन्शन उस | नायना नामक गाँव है। इसे कुठार कहा करते समय तकके लिये नियत कर दी जब तककि उसे | थे और तेरहवीं शताब्दीमै सोहनपाल बुन्देलेके देश लौटा नहीं दिया जायगा। १८०७ ई० में उसे समयमें बड़े महत्वका स्थान था। बहुत सी कोटारा तथा पवाई परगनेकी सनद मिली। उस बातोंसे पता चलता है कि यह प्राचीन कालमें बड़ा समय अजयगढ़का किला तथा उसके निकटवर्ती उन्नतशाली शहर रहा होगा और चौथी शताब्दी प्रान्त लक्ष्मण दौवा नामक एक प्रसिद्ध डाकूके अर्थात् गुप्त कालमें बसाया गया होगा। श्रधीन था । देशमें शान्ति स्थापित करना १६०१ ई० में राज्यकी श्राबादी ७८२३६ थी। अत्यन्त आवश्यक होनेके कारण अग्रेजोंने अपनी उसमें ६ प्रतिशत हिन्दू अर्थात् ७०३६० हैं । शेषमें सार्वभौम सत्ता उसे मनचाने के लिये बाधित ६ प्रतिशत गोड हैं जो ५०६२ हैं। और ३ प्रति- करके बह प्रान्त उसीके आधीन रहने दिया। शत मुसलमान हैं. ये २३१४ हैं। इस राज्यकी
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