अजयगढ़ ज्ञानकोप (अ)२ अजयपाल राजधानी अजयगढ़ है तथा इसमें ४८ गाँव है। ऊँचाई पर है। सबसे ऊपरके पचास फीटको १६११ ई० में यहाँकी श्राबादी ८७०६३ हो गई थी। छोड़कर बाकी भाग पर सुगमतासे चढ़ सकते हैं स्थानीय जातियाँ-ब्राह्मण १११००, चमार पहले लेखोमे इस किले को जयपुर दुर्ग कहा गया १२००, और काछी, बुन्देले ठाकुर, लोध, अहीर, | है। यह किला नवीं शताब्दीमें बनाया गया था। तथा गोड ३००० से ४८८० तक हैं। ४५ प्रतिशत यद्यपि इसमें कोई सन्देहका स्थान नहीं है परन्तु लोग खेती करके जीविका चलाते हैं और १७ अबुलफज़लके अतिरिक्त और कोई इतिहासकार प्रतिशत मजदूरी करते हैं। ५३ प्रतिशत खेतीके | इसका उल्लेख नहीं करता। यह त्रिकोण वना योग्य जमीन है अर्थात् कुल ४०७ वर्गमील जमीन | हुआ है। पहले इसमें पाँच दरवाज़े थे परन्तु में खेती की जा सकती है। उसमें से १० प्रतिशत अाजकल तीन बन्द कर दिये गये हैं। दीवार तीन पानी में है। १४४ वर्गमील जंगल है परन्तु उसमें | गज़ मोटी हैं, ऊपर कई पानीकी टंकियाँ और खेती नहीं की जा सकती है । ७६ वर्गमील जमीन तीन जैन मंदिर अव भी दिखाई देते है। किन्तु ऊसर है। चना, कोदो, गेहूँ, ज्वार, बाजरा | वे बिल्कुल टूटी फूटी स्थितिमें हैं। वह १२ वीं तथा कपास यहाँकी फसलें हैं। केन नदीमें नहर शताब्दीके ढंगके बने हुए हैं। यहां चंदेल राजाओं का काम चल रहा है। कुछ समय पहले यहाँ के समयके (सन ११४१ ई० से १३१५. ई० ) बहुत पर लोहे की खानोंकी खुदाईका काम किया जाता | से शिलालेख मिले हैं। था । परन्तु आजकल यह खाने बंद है। किसी इन पहाड़ों पर सागौन तथा तेंदूके बहुतसे किसी स्थानों में हीरे भी मिलते हैं। बंदूक, तलवार, वृक्ष हैं। इस कारण किलेका प्राकृतिक सौन्दर्य पिस्तौल यहाँपर तैय्यार की जाती हैं। इस राज्य और भी दर्शनीय हो जाता है। कोई मुख्य व्यापार नहीं है क्योंकि यह पहाड़ी शहरमें प्रारम्भिक शिक्षाके लिये एक पाठशाला स्थानमें बसा हुआ है। कुल ७२ मील लम्बी डाकखाना और दवाखाना है। जी आई० पी० सड़के हैं। इनमेसे २४ मील पक्की तथा ४८ मील | रेलवेका यहाँ एक स्टेशन है। वहाँले भहारा कच्ची हैं। इस राज्यकी आमदनी २३०००० रु० जानेके लिये एक उत्तम मार्ग है। मोटर, तांगा, है जो कि कर ही से होती है। मुख्यतः यह | बैलगाड़ी इत्यादि द्वारा लोग वहाँ जाते है। नरैनी कर तथा लगानसे ही होती है । मै डाक बंगला है आधुनिक राजधानीका नाम सेना-७१ घोड़ सवार, ३५० पैदल, ४४, गो- ! नौशहर (नया शहर ) है और जिस पहाड़ पर लंदाज तथा तोपें हैं। इसके अतिरिक्त ६८ | किला स्थित है उसके उत्तरीय भागमें यह शहर पुलिस, २११ गाँवकी पुलिस हैं। स्कूल कम बसाया है ( ? पार्नाल्ड-गाइड १९२०) संख्यामें है और उनमें सौ सवासी विद्यार्थी पढ़ते अजयपाल-(११७३-२१७७ ई०) गुजरातके हैं। अजयगढ़ शहरमै एक अस्पताल है। (इं. चालुक्य वंशके कुमारपालके वादका राजा । इसके मॉ० भाग ५) वारका नाम महिपाल था। कुमारपाल निसन्तान अजयगढ़ शहर-मध्य हिन्दुस्तान । अजयगढ़ | होने के कारण उसकी मृत्युके पश्चात् उसके भाईका राज्यकी राजधानी है। उत्तर अक्षांश २४५४ लड़का अजयपाल १२२६ ई. में गद्दी पर बैठा। तथा पूर्व देशांतर ८०१८ पर स्थित है। १६०१ ब्याश्रय काव्य तथा पाटनका अंकित लेख जो ई० में ग्राधादी ४२१६ थी। वेगवलमें है देखिये ] ! कुमारपाल प्रबंध श्राधुनिक राजधानीको 'नया शहर' कहते हैं। लिखा है कि कुमारपालकी इच्छा अपनी लड़कीके शहरके ऊपर किलेकी चहारदीवारी श्राकाशको लड़केको राज्य देनेकी थी परन्तु अजयपालने छूती हुई मालूम होती है। यह किला बुन्देलसंड | षड़यंत्र रचकर विष प्रयोग द्वारा कुमारपालको के उन अाठ विख्यात किलोमें से है जिनके बल पर हत्या कर डाली । सुकृत-संकीर्तनका लेखक बुन्देलौने मुसलमानों की दाल न गलने दी । २८०० | लिखता है कि अजयपालके दरबार में जो ई० में बाँदाके अलीवहादुरने यह किला :महीने | चांदीकी छत थी वह सपादलक्षा ( शिवालिक) घेरा डालने के बाद जीत लिया था। परन्तु १८०३ | के गजाके यहांसे श्राई हुई नज़र थी। जैन ग्रंथों ई० में वह लक्षमण दौवाफे हाथमें चला गया और | में इसका उल्लेख नहीं मिलता। कीर्तन कौमुदी १८०४ ई० में उसे कर्नल मार्टिनडेलने जीत लिया। : में अजयपालका नाममात्रके लिये उल्लेख अाया किला केदार पर्वत' नामक पहाड़ पर स्थित है और प्रबंधचितामणिके लेखकने तो स्पष्ट हैं। और वह समुद्रकी सतहसे १७४४ फीटकी | शब्दोंमें कहा है कि अजयपालने अपने चचाके ! 1 1
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