पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/१०६

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अजयसिंह ज्ञानकोश (अ) ६३ अजवाइन बनाये जैन मंदिरोंको उजाड़ डाला। प्रांबडा | छोड़ कर छिप कर रहना पड़ता था और इन आदि कुमारपालके जैन अमात्योंसे और उससे | लोगोंसे नित्य झगड़ा लगा रहता था। इनके बनती न थी । ऐसा पता चलता है कि यह अतिरिक्त पहाड़ोंमें रहने वाले भील आदि जाति निर्दयी तथा घमंडी था। उदयपुर के अंकित के नायकोसे भी अजयसिंहको झगड़ना पड़ता लेखों में उल्लिखित है कि ११७३ ई० में था। इन सब मुंजा भील नामक एक अत्यन्त सोमेश्वर अजयपालका कर्मचारी था। उसने ! बलिष्ठ नेता था। उसने एक बार 'शेरो'नाले पर कपदि नामक व्यक्तिको ब्राह्मणोंका अनुयायी होने चढ़ाई की और साथही अजयसिंहका सामना कर के कारण पहले तो अपना कर्मचारी नियुक्त कर के उसके मस्तक पर भालेका कार किया। अजय- लिया, किन्तु बाद में उससे कुछ अनबन हो जानेके सिंहके दो पुत्र थे। एक का नाम सज्जनसिंह तथा कारण उसे उबलते हुए तेलकी कढ़ाई में डाल देने दूसरेका अजीमसिंह था। सजनसिंहकी उम्र १४ की आज्ञा दे दी। दूसरे अवसर पर उसने राम- वर्ष तथा अजीमसिंहकी १६ वर्षकी थी। परन्तु वे चन्द्र नामक एक जैन पण्डितको तयते हुए ताँबेके इस संकट के अवसर पर काम न आये। इसलिये पत्र पर बैठनेका दण्ड दिया। बडा ( श्रान- अजयसिंहने हमीरको, जो अपने नानाके घर था भट्ट ) नामक उसके सरदारमै और उसमें इन्हीं बुलवाया और मुंजासे बदला लेनेकी श्राज्ञा की। सब कारणोंसे एक छोटी सी लड़ाई भी थी। इस पर हमीर मुजाका सिर काट कर अपने इसमें प्रांबडा मारा गया। १२३३ ई० में अजय- चाचाके पास ले आया और उसके सामने डाल पालके विजलदेव नामक द्वारपालने खंजर घुसेड़ दिया। इसपर अजयसिंह अति प्रसन्न हुआ कर उसकी हत्या कर डाली। और यह कह कर कि तुम्हारे भाग्यम देवने सामन- दाड़ साहबका मत है (वेर्टन इण्डिया) कि ज्योपभोग लिखा है। इसलिये अपने भतीजके मस्तक अजयपाल मुसलमान हो गया था, किन्तु ऐसा में मुजाके खूनसे तिलक किया। अजयसिंहके सिद्ध करने के लिये उपयुक्त प्रमाण नहीं दे सके दोनों पुत्रोंमें छोटा अजीमसिंह थोड़े ही दिनोंके हैं। इसके बाद इसका पुत्र मूलरोज द्वितीय गढ़ी। बाद केड़वाडाम मर गया। दूसरा सजनसिंह पाटनकी गद्दी पर बैठा। मूलराज अल्पवयस्क रह गया। था. अत: उसकी माता का देवी जो कदंव राजा अजयसिंहको यह भय था कि उसकी मृत्युके परमाद ( १९४७-२१७५ ) की कन्या थी, राज्यकी पश्चात् कहीं सजनसिंह और हमीरमें राज्यके सारी व्यवस्था करने लगी। इसका भाई भीम | लिये झगड़ा न हो। अतः अपने जीवन काल ही देव सेनापति नियुक्त हुआ। यह बड़ा शूर था। में उसे देश निर्वासित कर दिया। दो वर्षोंके अन्दर ही युवराज मूलराजका देहान्त सजनसिंह मारवाड़ छोड़कर सीधे दक्षिणमें हो गया। [आधार ग्रंथ बाम्बे-गजेटियर गुजरात आया और वहीं बस गया । इसीके वंशमें अजयसिंह-( १२६०-१३०१ ई.) चित्तौड़के | शिवाजी उत्पन्न हुए थे जिन्होंने औरगजेबके नाकों राणा लक्ष्मणसिंहके पश्चात् अजयसिंहको चित्तौड़ में दम करके मुसलमानोंसे महाराष्ट्र देश छीन छोड़ कर मारवाड़की पश्चिमीय सरहद पर आरा. कर खतन्त्रता स्थापित की थी। अजयसिंहसे वलीकी घाटीमें स्थित केडवाड़ा नामक स्थानमें | शिवाजी तक निम्नलिखित वंश-परम्परा दी हुई है- रहना पड़ा। जिस समय लक्ष्मणसिह जौहर के | अजयसिंह, . सजनसिंह, दलीपसिंह, शिवजी, लिये निकलने लगे थे ( देखिये लक्ष्मणसिंह) मोराजी, देवराज, उग्रसेन, माहुलजी, खेलूजी, अजयसिंहको आदेश कर गये थे कि अपने बाद जनकोजी, सटवाजी, संभाजी और उनके बाद अपने भाई अमरसिंह ( यह युद्धमें पहलेही मारा छत्रपति शिवाजी। लोकहितवादीमें माहुलजीके जा चुका था) के पुत्र हमीरको गद्दी पर बैठाना। बदले मालोजी और संभाजीकी जगह शाहजी अलाउद्दीनने जब चित्तौड़ जीत लिया तब वह कुछ । इत्यादि भिन्न भिन्न नाम दिये हैं (टाड राजस्थान)। दिन तक वहाँ ही ठहर कर मन्दिरौको नष्ट भ्रष्ट कुछ महाराष्ट्र इतिहासकारोंका मत इससे भिन्न करता रहा। जब सम्पूर्ण नगर उजाड़ डाला | है। चाहे कुछ भी हो किन्तु शिवाजीको राज्य- तो झालोरके मालदेव नामक अपने सामन्तको तिलक देते समय इनको सजनसिंहका वंशज मान घहाँका भी प्रबन्ध करनेके लिये नियुक्त किया। कर राज्याभिषेक हुआ था। दिल्लीके सिपाही तथा सवार मारवाड़ भरमें रक्षा अजवाइन-संस्कृतमें इसे धनानी, बँगलामें करने के लियेनियुक्त हुए। अजयसिंहको नगर न्यमानी, गुजराती यवान, मराठीमै ओवा कहते