पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/१०८

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अजित अजातशत्रु ज्ञानकोश (अ) ६५ एक समय गौतम बुद्ध की अजातशत्रुसे भेंट होने सके हैं। एक जगह उनका कथन है कि बिम्ब का उस्लेख मिलता है। इसकी कथा सामान्य सार महावीरका ही समकालीन था किन्तु सुतामें मिलती है। इसमें वर्णन किया गया है महावीरका निर्वाण काल तो ५२७ ई० पू० कि अजातशत्रुने अपने पितृ-बधके घोतकके लिये माना है। गौतमबुद्ध से मिलकर पश्चात्ताप प्रकट किया और खारवेल के शिलालेखोंसे शिशुनाग वंशका समय बोद्ध सिद्धान्तोंके प्रति अपनी अटल भक्ति दर्शाकर | कुछ पीछे हटाना पड़ता है और अजातशत्रुको उनसे क्षमा प्राप्त की। भर्तृत स्तूप पर इस ५५४-५२७ ई० पू० ही का काल देना पड़ेगा। किन्तु प्रसंगका चित्र भी बना हुआ है (बुद्धोत्तर जग बुद्ध और महावीर बिम्बसार और अजातशत्रुके पृ० १४७)। समकालीन अवश्य थे और उन दोनोंकी मृत्यु कौशलनरेशकी बहन अजातशत्रुकी सौतेली माँ अजातशत्रुके समय ही में हुई थी, और महावीर थी। अपने पतिका बध देखकर वह सती साध्वी के निर्वाणका समय ई० पू. ४.७ भी हो सकता भी परलोक सिधारी। यह मालूम होनेपर कौसला- है। अतः इसपर निश्चयपूर्वक स्मिथ साहब भी धीशने अजातशत्रुपर चढ़ाई कर दी। बहुत कुछ न कह सके । दिन तक युद्ध चलता रहा । अन्त में विजय बिहार उड़ीसाके संशोधन मण्डल ( Resea- मगधराज की ही रही । श्रन्त में कौशल rch Society ) के पत्र (Journal) के १६१६ ई० नरेशको अपनी कन्यो देकर सन्धि करनी पड़ी के दिसम्बर अंकमें श्रीयुत के० पी० जयसवालने ( वी० स्मिथकी अर्ली हिस्ट्री)। ह्रीस डेविड्सने अजातशत्रुकी मूर्तिके संशोधनका वृत्तान्त दिया है इस विषयमें भिन्न ही कथा दी है। बुद्धोत्तर जग० (Modern Review Feb. 1920)1 उनका कथन पृ० १६८)। इस विजयसे अजातशत्रुको सन्तोष है कि पहले वह मूर्ति किसी यक्षकी समझी नहीं हुश्रा। उसने गंगाके उत्तरमै लिच्छवी जाती थी, पर इस मूर्तिके नीचे एक लेख है। राज्य ( श्राधुनिक तिरहुत ) पर चढ़ाई की। इसके कुछ अक्षर अदृश्य हो गये हैं किन्तु जो हैं इसकी रोजधानी वैशाली थी। यद्यपि अजातशत्रु उन्हींके आधारों पर शंका करने का कोई भी कारण की माता उसी वंशकी थी तो भी उसने अपने नहीं रह जाता। उसमें मिलताहै-सेनी (श्रेणी) मातामहका प्रदेश अपने आधीन कर लिया। श्रजा ( त ) शत्रु, फुणिक सेवा सिनजो (शिशुनाग) तदनन्तर उत्तरमे हिमालय तकके सम्पूर्ण प्रदेशों मगधनं राज इत्यादि इत्यादि । को जीत कर अपने राज्यमें मिला लिया। अनाहुत सरदेशमुख-पहले पहल मराठों लिच्छवी राज्यसे अपनी पूर्ण रक्षाके हेतु उसने के राजा शाहूने 'अजाहुत सरदेशमुख' नामक एक सोन नदी और गंगाके संगम पर पाटली नामक पद अपने मन्त्रीके एक सम्बन्धीके लिये निर्माण गाँवमें एक किला बनवाया। यहीं पर इसके किया था। इस पदपर काम करनेवालेको सम्पूर्ण पौत्रने पाटली नगर बसाया। इसके बाद कुसुम- मराठा देशसे सरदेशमुखी (एक प्रकारका कर) पुर, पुष्पपुर. पाटलीपुत्रके नामसे यह गाँव सारे | वसूल करना पड़ता था। शाहूकी मृत्यु के बाद भारतमें प्रसिद्ध हो गया, और मौर्यवंशके समय बालाजी बाजीरावने केवल नाम मात्रके लिये यह तो यह केवल मगधका ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण पद कायम रक्खा। उसने कुछ जागीर अजाहुत भारतका केन्द्र बना हुआ था। वायुपुराणमें ! सरदेशमुखके नाम अवश्य कर दी किन्तु दक्षिणके इस नगरकी उत्पत्तिकी कथा है। यह ध्यानमें : ६ प्रान्तोसे देशमुखी वसूल करनेका अधिकार रखने योग्य बात है कि इसके तीनों नाम पुष्प- उसके हाथसे निकाल लिया। बादमें तो धीरे धीरे वाचक ही हैं। पेशवाओने इस पदको बिल्कुल ही तोड़ दिया अजातशत्रुके देहान्तका समय लगभग ई० पू० ! क्योंकि यह कर वसूल करनेका अधिकार पेश- ५२७ होगा । अजातशत्रुका ऊपर दिया हुश्रा काल वाओं ही को था और यदि यह अधिकार किसी वी० स्मिथके आधार पर भी कहा जा सकता है। दूसरेके हाथमें छोड़ दिया जाता तो पेशवाओंकी प्रथमतः तो उसने अजातशत्रुका समय मोटी रीति सत्तामे बहुत कुछ कमी आ जाती । से ई० पू० ५०५-४७५ और बुद्ध निर्वाणका समय अजित- जैनियोंके २४ तीर्थङ्करो (अवतारों) ई० पू० ४८७ अथवा ४८६ लिखा था ( Earlv His- | में से यह दूसरा माना जाता है। प्रथम अर्हत्के tory Ed. 1914)। परन्तु कुछ घटनाओके समा बाद यह दूसरा अहंत हुश्रा । जैनियोने कालके वेशसे वी० स्मिथ कुछ निश्चयपूर्वक नहीं कह | दो भेद माने हैं--(१) उत्सर्पिणी। इससे तात्पर्य 1 ।